अब इतना भी ना कीजीये, अपने हुस्न पे गरूर
चन्द हुस्न वाले हम पे भी थोड़ा तो मरते है हजूर
महफिल में अपनी तारीफ से,इतना ना इतराईये
कुछ लोग आईना जेब में, लेके चलते है हजूर
करने को मुझको आपने, बेआबरू तो कर दिया
मेरे कसूर में मगर, शामिल था तेरा भी कसूर
तुम्हे छोड़ इस जहाँ से रुखसत कैसे होगे क्या पता
हर बार पलट आया, जब भी, दो कदम गया हूँ दूर
आसमाँ पे चलने को, पाँव उठाना ये सोच कर
पैरों तले से जमीन भी, खिसक जाती है हजूर
सब समझ जायेंगे मुझको किससे कितना प्यार था
तेरा नाम मरते दम मेरे, लब पे आना है जरूर
चन्द हुस्न वाले हम पे भी थोड़ा तो मरते है हजूर
महफिल में अपनी तारीफ से,इतना ना इतराईये
कुछ लोग आईना जेब में, लेके चलते है हजूर
करने को मुझको आपने, बेआबरू तो कर दिया
मेरे कसूर में मगर, शामिल था तेरा भी कसूर
तुम्हे छोड़ इस जहाँ से रुखसत कैसे होगे क्या पता
हर बार पलट आया, जब भी, दो कदम गया हूँ दूर
आसमाँ पे चलने को, पाँव उठाना ये सोच कर
पैरों तले से जमीन भी, खिसक जाती है हजूर
सब समझ जायेंगे मुझको किससे कितना प्यार था
तेरा नाम मरते दम मेरे, लब पे आना है जरूर
14 comments:
zabardast sarkar, sach me bahut he sundar
taareef ke liye shukriyaa Shubhashish ji . Agar aap apanaa E mail ya blog address ya koii aur contact chhodate to behatar hotaa
दमदार। अति सुंदर।
प्र्भाकर पाण्डेय जी
आपका बहुत बहुत शुक्रिया इतने खुले दिल से प्र्शंसा करने के लिये कृप्या ब्लाग पर आते रहिये अच्छा लगेगा पुन: धन्यवाद
महफिल में अपनी तारीफ से,इतना ना इतराईये
कुछ लोग आईना जेब में, लेके चलते है हजूर!
वाह क्या लाइन है... बहुत खूबसूरत
अभिषेक जी
आप ने खुले मन से गजल की तारीफ की आप का बहुत बहुत शुक्रिया । किसी विशेष शेर की तारीफ बताती है कि गजल आप ने कितने धयान से पढ़ी
आप यकीन माने तो कहूँ ये गजल (या इस गजल के कुछ शेर) मैने किसी ब्लागर विशेष को मधयनजर रखते हुये ही लिखी है
अच्छी गज़ल.
आसमाँ पे चलने को, पाँव उठाना ये सोच कर
पैरों तले से जमीन भी, खिसक जाती है हजूर
bahad umda sher!
atuul jii
aap kaa is blaag par hridaya se swaagat hai
aap ne gazal pasand kii shukriyaablaag par aate raheMge to achchhaa lageagaa
अल्पना वर्मा जी,
आप ने गज़ल को पसन्द किया बहुत बहुत शुक्रिया
जहा तक इस शेर की बात है एक बार इस से मिलता जुलता शेर मैने पहले् किसी वाद विवाद प्रतियोगिता मे बोला था और पुरुस्कार भी जीता था वाद विवाद का विष्य था 'आज की आर्थिक प्रगति मे आम आदमी का हित पीछे छूट रहा है' शेर यू था
इस तरक्की से हासिल तो कुछ भी नही
क्या हुआ गर तरक्की जो कुछ हो गयी
आप कहते रहो आसमाँ मिल गया
मै तो इतना कहुँगा जमी खो गयी
महफिल में अपनी तारीफ से,इतना ना इतराईये
कुछ लोग आईना जेब में, लेके चलते है हजूर!
Ine lines par khoob maza aya ....bahut umda likha hai
कीर्ति जी
आप की इस टिप्प्णी के जवाब मे मुझे कहना तो बहुत कुछ था पर डर लगता है आप कही नाराज ना हो जाये इस लिये अपनी भावनाओ को मार कर केवल धन्यवाद कह रहा हूँ
हाँ एक प्रार्थना जरूर है जब तक कोई रचना किसी पारखी के तराजु पर नही तुलती उसका सही वजन मालूम नही हो पाता इसलिये कृप्या टिप्प्णी कर दिया कीजिये चाहे एक दो शब्दों मे ही सही । बाकी जैसा आपको उचित लगे ।
Krishan Lal ji...aap dil khol kar baat kiya karey...mein naraz nahi hoti...plz
आश्वासन के लिये शुक्रिया कीर्ति जी क्या E मैल संभव है या टिप्प्णी दवारा ही
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