Wednesday, April 23, 2008

अब बता इस राह मे अपना तूँ क्या गवाँयेगी

अपनी हर इक बात पे जो तूँ इस तरह अड़ जायेगी
बिगड़ी हूई फिर बात कोई किस तरह बन पायेगी
 खोल दे किवाड़ या फिर खोल दे खिड़की कोई
 वरना सारे घर मे ही बेहद घुटन हो जायेगी
 धूप का टुकडा हूँ थोड़ी उम्र है वो भी उधार की
जल्दी कर सांझ तक तो ज्यादा देर हो जायेगी
 प्यार के इन फूलों को तूँ किताबों में ना दे सूखने
 रंग़ शायद बच भी जाये पर महक उड जायेगी
 मेह्न्दी हाथो मे लगा हर खवाब अपना तूँ पूरा कर
 ज्यादा दिन तक हाथ खाली कैसे तूँ रख पायेगी
 जिन्दगी के सफर मे कहीँ रुक के डेरा भी डाल ले
वरना सारी जिन्दगी इक तलाश बन रह जायेगी
 मै तो गँवांने के लिये अपनी जान तक तैयार हूँ
अब बता इस राह में तूँ क्या अपना गंवायेगी
 दस्तक भी कितनी देर तक देगा कोई दर पे तेरे
अन्दर से उसको जब कोई आवाज तक ना आयेगी

8 comments:

Alpana Verma said...

धूप का टुकडा हूँ थोड़ी उम्र है वो भी उधार की
जल्दी कर सांझ तक तो ज्यादा देर हो जायेगी
bahut achcha likha hai--

lekin--
मै तो गँवांने के लिये अपनी जान तक तैयार हूँ
अब बता इस राह में तूँ क्या अपना गंवायेगी
is mein khudgarzi ki buu aa rahi hai!pyar mein apeksha nahin rakhni chaheeye--

Abhishek Ojha said...

प्यार के इन फूलों को तूँ किताबों में ना दे सूखने
रंग़ शायद बच भी जाये पर महक उड जायेगी ||

बहुत खूब !

डॉ .अनुराग said...

धूप का टुकडा हूँ थोड़ी उम्र है वो भी उधार की
जल्दी कर सांझ तक तो ज्यादा देर हो जायेगी

bahut khoob....sir ji.

Keerti Vaidya said...

wah..apki ise kavita mein bahut dum hai..maza aa gaya padh kar

Krishan lal "krishan" said...

अल्पना वर्मा जी
बहुत बहुत शुक्रिया आप्की रचनात्मक टिप्पणी के लिये
मुझे बहुत अच्छा लगा ये देख कर कि आप ने गज़ल कितने धयान से पढ़ी। आपको धूप के टुकड़े वाला शेर पसन्द आया मै इसके लिये आप का आभारी हूँ
जहा तक प्रश्न है दूसरे शेर का तो आप ने एक दम सही लिखा है कि प्यार मे अपेक्षा नही रखनी चाहिये इस मे खुदगरजी की बू आती है
परन्तू लगता है कही शब्दो या भाषा के प्र्योग मे मुझ से चूक हो गयी है जिसके कारण ऐसा अर्थ निकला जैसा आपने लिखा है
मेरा आशय इस शेर मे ये कहने का था प्यार की राह बलिदान मागती है एक प्रेमी कहता है कि वो इस राह मे अपनी जान तक गवाने को तैयार है वो जानना चाहता है क्या उसका हमसफर भी इस राह मे कुछ बलिदान देने को तैयार है वासत्व मे पहले मैने इस शेर को यू लिखा था

प्यार का सौदा है ये यहा खो के पाया जायेगा
अब बता इस राह मे अपना क्या तूँ गवायेगी

पर जाने क्या सोच कर मुझे लगा कि दूसरा शेर ज्यादा बेह्तर है क्योकि उसमे पहले अपनी कोमिटमैन्ट है कि मै तो अपनी जान तक गवाने को तैयार हूँ मेरा मानना था कि पहले बलिदान के लिये खुद तैयार होना चाहिये फिर दूसरे से अपेक्षा रखनी चाहिये और ये अपेक्षा भी अपने लिये नही बल्कि उस प्यार के जज्बे के लिये है
फिर भी आइन्द्दा और बेह्तर तरीके से कहने का प्रयास करूँगा कृप्या ऐसी ही रचनात्मक टिप्प्णिया करती रहा करे।
पुन: धन्यवाद

Krishan lal "krishan" said...

अभिषेक ओझा जी,
आप्को प्यार के इस फूलो वाला शेर आपको पस्न्द आया आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Krishan lal "krishan" said...

डा अनुराग आर्या जी

आपका बहुत बहुत स्वागत है मेरे ब्लाग पर आप शाय्द पहली बार आये है। आपको शूप के टुकडे वाला शेर पसन्द आया मै आप का आभारी हूँ। कृप्या विजिट करते रहे अच्छा लगेगा

Krishan lal "krishan" said...

कीर्ति जी
आपने कविता की प्रशसा की धन्यवाद पढ़ने मे मज़ा आया मेरा लिखना सफल हुआ परन्तु मै चाहता था आप बताते कि कौन सा शेर आपको ज्यादा अच्छा लगा
जैसा कि मैने पहले भी कहा है मै लिखने के लिये नही लिखता मै दिल से लिखता हू। जब तक उस पल को उस हालात को मै जी नही लेता या उसका मूर्त अमूर्त रूप मे अहसास नही कर लेता मै नही लिख सकता मै जानना चाहता था कि क्या मै दुसे्रे के अहसास को ठीक से जी पाया हूँ या नही