अपनी हर इक बात पे जो तूँ इस तरह अड़ जायेगी
बिगड़ी हूई फिर बात कोई किस तरह बन पायेगी
खोल दे किवाड़ या फिर खोल दे खिड़की कोई
वरना सारे घर मे ही बेहद घुटन हो जायेगी
धूप का टुकडा हूँ थोड़ी उम्र है वो भी उधार की
जल्दी कर सांझ तक तो ज्यादा देर हो जायेगी
प्यार के इन फूलों को तूँ किताबों में ना दे सूखने
रंग़ शायद बच भी जाये पर महक उड जायेगी
मेह्न्दी हाथो मे लगा हर खवाब अपना तूँ पूरा कर
ज्यादा दिन तक हाथ खाली कैसे तूँ रख पायेगी
जिन्दगी के सफर मे कहीँ रुक के डेरा भी डाल ले
वरना सारी जिन्दगी इक तलाश बन रह जायेगी
मै तो गँवांने के लिये अपनी जान तक तैयार हूँ
अब बता इस राह में तूँ क्या अपना गंवायेगी
दस्तक भी कितनी देर तक देगा कोई दर पे तेरे
अन्दर से उसको जब कोई आवाज तक ना आयेगी
बिगड़ी हूई फिर बात कोई किस तरह बन पायेगी
खोल दे किवाड़ या फिर खोल दे खिड़की कोई
वरना सारे घर मे ही बेहद घुटन हो जायेगी
धूप का टुकडा हूँ थोड़ी उम्र है वो भी उधार की
जल्दी कर सांझ तक तो ज्यादा देर हो जायेगी
प्यार के इन फूलों को तूँ किताबों में ना दे सूखने
रंग़ शायद बच भी जाये पर महक उड जायेगी
मेह्न्दी हाथो मे लगा हर खवाब अपना तूँ पूरा कर
ज्यादा दिन तक हाथ खाली कैसे तूँ रख पायेगी
जिन्दगी के सफर मे कहीँ रुक के डेरा भी डाल ले
वरना सारी जिन्दगी इक तलाश बन रह जायेगी
मै तो गँवांने के लिये अपनी जान तक तैयार हूँ
अब बता इस राह में तूँ क्या अपना गंवायेगी
दस्तक भी कितनी देर तक देगा कोई दर पे तेरे
अन्दर से उसको जब कोई आवाज तक ना आयेगी
8 comments:
धूप का टुकडा हूँ थोड़ी उम्र है वो भी उधार की
जल्दी कर सांझ तक तो ज्यादा देर हो जायेगी
bahut achcha likha hai--
lekin--
मै तो गँवांने के लिये अपनी जान तक तैयार हूँ
अब बता इस राह में तूँ क्या अपना गंवायेगी
is mein khudgarzi ki buu aa rahi hai!pyar mein apeksha nahin rakhni chaheeye--
प्यार के इन फूलों को तूँ किताबों में ना दे सूखने
रंग़ शायद बच भी जाये पर महक उड जायेगी ||
बहुत खूब !
धूप का टुकडा हूँ थोड़ी उम्र है वो भी उधार की
जल्दी कर सांझ तक तो ज्यादा देर हो जायेगी
bahut khoob....sir ji.
wah..apki ise kavita mein bahut dum hai..maza aa gaya padh kar
अल्पना वर्मा जी
बहुत बहुत शुक्रिया आप्की रचनात्मक टिप्पणी के लिये
मुझे बहुत अच्छा लगा ये देख कर कि आप ने गज़ल कितने धयान से पढ़ी। आपको धूप के टुकड़े वाला शेर पसन्द आया मै इसके लिये आप का आभारी हूँ
जहा तक प्रश्न है दूसरे शेर का तो आप ने एक दम सही लिखा है कि प्यार मे अपेक्षा नही रखनी चाहिये इस मे खुदगरजी की बू आती है
परन्तू लगता है कही शब्दो या भाषा के प्र्योग मे मुझ से चूक हो गयी है जिसके कारण ऐसा अर्थ निकला जैसा आपने लिखा है
मेरा आशय इस शेर मे ये कहने का था प्यार की राह बलिदान मागती है एक प्रेमी कहता है कि वो इस राह मे अपनी जान तक गवाने को तैयार है वो जानना चाहता है क्या उसका हमसफर भी इस राह मे कुछ बलिदान देने को तैयार है वासत्व मे पहले मैने इस शेर को यू लिखा था
प्यार का सौदा है ये यहा खो के पाया जायेगा
अब बता इस राह मे अपना क्या तूँ गवायेगी
पर जाने क्या सोच कर मुझे लगा कि दूसरा शेर ज्यादा बेह्तर है क्योकि उसमे पहले अपनी कोमिटमैन्ट है कि मै तो अपनी जान तक गवाने को तैयार हूँ मेरा मानना था कि पहले बलिदान के लिये खुद तैयार होना चाहिये फिर दूसरे से अपेक्षा रखनी चाहिये और ये अपेक्षा भी अपने लिये नही बल्कि उस प्यार के जज्बे के लिये है
फिर भी आइन्द्दा और बेह्तर तरीके से कहने का प्रयास करूँगा कृप्या ऐसी ही रचनात्मक टिप्प्णिया करती रहा करे।
पुन: धन्यवाद
अभिषेक ओझा जी,
आप्को प्यार के इस फूलो वाला शेर आपको पस्न्द आया आपका बहुत बहुत शुक्रिया
डा अनुराग आर्या जी
आपका बहुत बहुत स्वागत है मेरे ब्लाग पर आप शाय्द पहली बार आये है। आपको शूप के टुकडे वाला शेर पसन्द आया मै आप का आभारी हूँ। कृप्या विजिट करते रहे अच्छा लगेगा
कीर्ति जी
आपने कविता की प्रशसा की धन्यवाद पढ़ने मे मज़ा आया मेरा लिखना सफल हुआ परन्तु मै चाहता था आप बताते कि कौन सा शेर आपको ज्यादा अच्छा लगा
जैसा कि मैने पहले भी कहा है मै लिखने के लिये नही लिखता मै दिल से लिखता हू। जब तक उस पल को उस हालात को मै जी नही लेता या उसका मूर्त अमूर्त रूप मे अहसास नही कर लेता मै नही लिख सकता मै जानना चाहता था कि क्या मै दुसे्रे के अहसास को ठीक से जी पाया हूँ या नही
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