Tuesday, June 3, 2008

काश तुम ही समझ जाती जो नही कहा है मैने

पता नही क्यों
 जम जाते है स्वर नली मे वो सारे शब्द
 जिन्हे रात भर अपने प्यार की गर्मी से
 रखता हूँ गर्म ताकि उगल सकूँ उन्हे ज्यों का त्यों
अगर और कुछ ना भी कह सकूँ तुम से
जब तुम मिलो सुबह रेलवे फाटक के उस पार
 कालिज जाते हुये
 पता नही क्यों खडा रह्ता हूँ जडवत
 घन्टो तुम्हारे इन्त्जार मे
सारी शक्ति कहाँ खो जाती है
 शरीर क्यों हो जाता हैं निढाल
 ठीक उस क्षण जब तुम आने ही वाली होती हो
लगता है कमजोर पड रही है पाँव तले की जमीन
और मै अकस्मात चल पडता हूँ वहाँ से
 बिना तुम्हे मिले बस ये सोच कर
कि कल फिर एक बार करूँगा कोशिश
वहाँ पर टिके रहने की
 उन जमे हुये शब्दो को बाहर निकाल कहने की
 पता नही क्यों
 मुझे पता है नहीं होगा कल
 कुछ भी आज से ज्यादा
 कोई अर्थ नही रखता मेरा
 आज का पक्का इरादा
 फिर तुम ही क्यों नही समझ जाती
जो नही कहा है मैने
 या क्यों नही अपने प्यार की गर्मी मिला देती मेरे प्यार की गर्मी मे
तकि उस गर्मी से पिघल सके वो शब्द
 जो जम जाते है जब भी तुम सामने होती हो
 काश तुम ही समझ जाती "वो"
जो नही कहा है मैने

6 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

काश
तुम ही समझ जाती
"वो"
जो नही कहा है मैने

बहुत खूब!!

***राजीव रंजन प्रसाद

Krishan lal "krishan" said...

rajiiv ranjan ji
bahut bahut shukriyaa kavita ko pasand karane ke liye.

नीरज गोस्वामी said...

मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं
वो सुनी दे रहा सब जो कहा तुमने नहीं
क्रिशन जी
जब दिल मिल जाते हैं तो कहाँ कुछ कहने सुन ने की जरूरत रह जाती है.
बहुत अच्छे भाव दिए हैं आप ने अपनी रचना में. बधाई.
नीरज

Udan Tashtari said...

काश
तुम ही समझ जाती
"वो"
जो नही कहा है मैने

-यही समझाने में तो कितने आशिक जीवन तमाम हो गये.

बहुत उम्दा.

Krishan lal "krishan" said...

Niraj ji
bahut bahut shukriya kavita ko pasand karane ke liye.

Krishan lal "krishan" said...

samir ji
bahut bahut shukriya kavita ko pasand karane ke liye. Aap ne sahi kaha hai ki kai janam beet jaate hain us sab ko samajhne ke liye jo nahi kaha ja paata