Tuesday, April 21, 2009

मोहरा सब हैं बने हुए इक दूसरे के हाथों मे

जब समुन्द्र से कोई कतरा जुदा हो जायेगा
समुन्द्र तो घटना नही कतरा फना हो जायेगा
दूर रहने से कहा मिटती हैं दिल की दूरीया
इस तरह तो फ़ासला और भी बढ जायेगा
चुप रहोगे तो मिटेगे किस तरह शिकवे गिले
बात ना करने का गिला और इक बढ जायेगा
बढ गये साधन सफ़र के मन्जिले आसाँ हुई
दिल से दिल का फासला शायद ही मिट पायेगा
जन्मो जन्म तक है चलता प्यार ये तो यूँ हुआ
धुप ना बारिश तो छाता सदियों चलता जायेगा
मोहरा सब हैं बने हुए इक दूसरे के हाथ मे
देखें कौन मोहरा पहले अपनी जान गवायेगा
इक दूसरे का इस्तेमाल करने मे माहिर है सब
इस पैतरेबाजी मे देखे कौन किसको हरायेगा
शोख तो दिखता है लेकिन कच्चा है रगे वफा
 पहली बारिश पडते ही सारा रग धुल जायेगा

1 comment:

अजय कुमार झा said...

baahut umdaa rachnaa hai krishan lal jee, likhte rahein, kyunki ham padh rahe hain ....