Friday, April 24, 2009

ईन्ट पत्थर की दीवारो को कहें घर कैसे

ईन्ट पत्थर की दीवारो को कहें घर कैसे
घर में अपनो को जरूरी है बसाये रखना
अब तो आ जाओ कि घर घर ना रहा तेरे बिना
 चाहो तो हम से भले दूरी बनाये रखना
आप घर मे तो नहीं दिल मे ही रहते हो सनम
 काफी है दिल मे क्या बसना या बसाये रखना
मेरी तकलीफ से तुझको कोई तकलीफ ना हो
 अपनी तकलीफें जरूरी था छिपाये रखना
उफ ये बरसात का मौसम ये टपकती हुई छत
और तेरे खत भी हैं पानी से बचाये रखना
लुटने लायक तो नही बाकी बचा कुछ घर मे
 फिर भी आदत सी है तालों का लगाये रखना
 सिर्फ सांसो से नही उम्मीद से जिन्दा है सभी
 तुम भी उम्मीद मेरी उम्मीद बनाये रखना

1 comment:

श्यामल सुमन said...

लुटने लायक तो नही बाकी बचा कुछ घर मे
फिर भी आदत सी है तालों का लगाये रखना

उक्त पँक्तियाँ अच्छी लगीं। देखिये मेरी भी एक तात्कालिक तुकबंदी इसी तर्ज पर-

कुछ भी बचा हो घर में ताले बचा सकेंगे?
ईमान की हो नीयत उसको जगाये रखना।।


सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com