Friday, February 8, 2008

वेलेन्टाईन की तलाश है

पहले तो कभी भी हुआ नहीं इस बार शायद कोई बात बने मै किसी का वैलेन्टाईन बनूँ कोई मेरी वैलेन्टाईन बने जीवन की इस भाग दौड में सबसे आगे बढने की होड़ मैं वक्त नही है पास किसी के जो कोई थामे उसका हाथ छोड़ गये अपने बेगाने जिस बदकिस्मत इन्साँ का साथ मैं चाहूँ कि ऐसे ही किसी शख्स की जो कोई बात सुने मैं उसका वैलेन्टाईन बनूँ वो मेरी वैलेन्टाईन बने तन्हाई क्या होती है और दर्द है क्या तन्हाई में इस दर्द को बस वो ही जाने कुछ दिन जिसके गुजरे हों तन्हाई में घर की चार दीवारों से ही जिसकी रिश्तेदारी हो बिस्तर से हो दोस्ती जिसकी बस सिरहाने से यारी हो तुम्हें अगर मिल जाये जो हो इतना तन्हा जीवन मे कहना उससे दिन सात गिने मैं बनूँगा उसका वैलेन्टाईन वो मेरी वैलेन्टाईन बने लेकर बस हाथो में हाथ बैठे रहें चन्द घंटो साथ और भले कुछ हो ना हो पर मन से हो कोई मन की बात मैं उसके दिल की बात सुनूँ वो मेरे दिल की बात सुने मै उसका वैलेन्टाईन बनूँ वो मेरी वेलेन्टाईन बने

15 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

Anonymous said...

What a wonderful poem . Wish you get a equally wonderful valentine this time....
Anjali

Anonymous said...

bahut achhi kavita hai.....

Krishan lal "krishan" said...

Thanks for appreciating the lines

Poonam Misra said...

तन्हाई का दर्द कितनी कुशलता से सामने रख दिया.बहुत अच्छी कविता .

Krishan lal "krishan" said...

धन्यवाद पूनम जी। मेरे इस ब्लाग पे आने के लिये और मेरे इस प्रयास को सर्हाने के लिये।
कह्ते हैं कि दर्द कहने से कुछ कम हो जाता है
और अगर कोई उस दर्द को समझने का अहसास दे तो और भी राहत मह्सूस होती है
पुन: धन्यवाद

अमिताभ मीत said...

Beautiful Sir. Just beautiful. So beautiful, it touches.

डॉ० अनिल चड्डा said...

बड़ी दुखी आत्मा की महक लगती है ।

Anonymous said...

this is realy wonderful poem,very touching,nice.

Krishan lal "krishan" said...

मीत जी
आप का स्वागत है इस ब्लाग पर्।
आप की टिप्पणी से उत्साहित होना स्व्भाविक है। उत्साह बढाने के लिये आप का ह्रदय से धन्य्वाद ।

अनिल जी
दुखी आत्मा के साथ 'महक' जैसे कोमल और खुशनुमा शब्दों का प्रयोग नही होता वैसे भी
जहाँ महक होती है वहाँ दुख का वास नहीं होता। महक तो तन मन को महकाती है तो दुखी आत्मा का तो प्रश्न ही नहीं होता । हाँ अगर जीवन मे महक ना हो तो बात और है………
फिर भी आप की तिप्प्णी के लिये धन्यवाद

Krishan lal "krishan" said...

Mehek ji,
Thanks right from the core of my heart for appreciating the poems and encouraging time and again.

It is really nice to have such a sensitive as well as sensible (although secretive) reader on the blog.

Pramendra Pratap Singh said...

आपकी कविता अच्‍छी लगी, किन्‍तु प्रेम के इजहार कोई दिन निर्धारित किया जाना ठीक नही है।

प्रेम सदाबहार है, इसे विदेशी ताकतों की वैश्‍वीकारण व्‍यापार में फसाना ठीक है।

आईये मनाऐं 14 फरवरी को माता पिता पूजन दिवस

Krishan lal "krishan" said...

महाशक्ति जी
कविता की प्रशंसा के लिये धन्यवाद्।
हमें कोई बात अच्छी लगे ना लगे पर हम उस के अस्तित्व को नकार नहीं सकते । वलेन्टाईन हर साल बढता ही जा रहा है। इसी लिये हमने भी उस का आनन्द उठाने की सोच ली।
14 फरवरी तक मै केवल वैलेन्टाईन पर ही लिखुगा आप को वलेन्टाईन अच्छा नहीं लगता तो शायद आप जैसे विचार रखने वालों को वैलेन्टाईन पर मेरी अगली कविता अच्छी लगे मैने अभी अभी पोस्ट कर दी है ।

Anonymous said...

मै कब से आप्की कविताये प्ढ रही हूँ। बहुत अच्छा लिखते है आप । पहली बार कामेन्त्स दे रही हू। सीधे मन में उतर गयी आपकी कविता
अगर आपने अपना फोटो ना छापा होता तो पता नहीं कौन कौन आप्का वेलेनटाय्न बनने को तैयार हो जाता। पर हम तो अब भी हैं ना

Anonymous said...

बहुत अच्छी कविता जी,वैसे हमे भी तलाश है एक वेलेंटाईन की ..अगर कोई बनना चाहे तो वेल..टाईम से कांटेक्ट करे अब ज्यादा दूर नही है ये दिन..:)