Tuesday, March 11, 2008

यार यूँ ही बेवफाई क्यों करेगा यार से

बेवफाई और वफा मजबूरी हैं दोनों प्यार में
फिर काहे जतलाना किसी भी बात का बेकार में
 आपने वादा किया आये नहीं तो क्या हुआ
कुछ दिन तो अच्छे कट गये यूँ तेरे इंतजार मे
 मुझको है अहसास कि मिलने मे वो मज़ा कहाँ
 जो मज़ा आता है अपने यार की इन्तजार मे
 आप फिर वादा करो मै फिर करूँगा इन्तजार ये
 उम्र सारी काट सकता हूँ तेरे इन्तजार में
 जीवन है ऐसे मोड़ पे कोई साथ दे सकता नहीं
 साया भी साथ छोड़ गया क्या गिला फिर यार से
 यूँ भी हर वादा तो किसी का वफा होता नहीं
जो तुम ना पूरे कर सके वादे वो बस दो चार थे
 तूँ है मेरा प्यार बेशक लाख तड़पाये मुझे
 मैं खफा होता नहीं हरगिज भी अपने प्यार से
 क्या पता मजबूरियां कितनी रहीं होंगी तेरी
यार यूँ ही बेवफाई क्यो करेगा यार से

6 comments:

Anonymous said...

bahut hi badhiya

Krishan lal "krishan" said...

महक जी,
बहुत बहुत शुक्रिया। अगर आप ये सदेश पढ़े तो "होली" पर आप से एक अच्छी कविता की उम्मीद है काव्य प्ल्लवन मे भेजेंगें तो हम भी पढ़ कर आनन्द प्राप्त कर सकेंगे E मैल ना होने के कारण यहीं पर आप से अर्ज करना पड़ रहा है

प्रशांत तिवारी said...

बहुत बढिया सर जी दिल खुश हो गया

Krishan lal "krishan" said...

प्रशांत तिवारी जी
आप की टिप्प्णी पढ़कर मेरा भी दिल खुश हो गया
आपका बहुत बहुत शुक्रिया गजल को सरहाने के लिये

Krishan lal "krishan" said...

प्रशांत तिवारी जी
आप की टिप्प्णी पढ़कर मेरा भी दिल खुश हो गया
आपका बहुत बहुत शुक्रिया गजल को सरहाने के लिये

Anonymous said...

शानदार ग़ज़ल लिखी है. बधाई! डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'