Tuesday, May 6, 2008

शीशे के घरों में रहते हो और पत्थर फैंकते हो मुझ पर

जब दिल मे प्यार बचा ही नही  इक बार में रिश्ता खत्म करो
 बेजान हुए रिश्तों की लाश को मुझसे नहीं ढोया जाता
 जब मन में कोई खुशी ना हो होंठों से हंस कर क्या हासिल
जब दिल में कोई दर्द ना हो आँखो से नही रोया जाता
 तकलीफ मुझे पल पल दे कर तुमने चाहा हर खुशी मिले
 अजी आम अगर खाने हों तो बबूल नहीं बोया जाता
 इक इक रिश्ते के मरने पर इतना रोया कि मत पूछो
 नही आँख मे आँसू बचा कोई अब मुझसे नहीं रोया जाता
 है कौन सा दामन जिसमें कभी दाग कोई भी लगा ना हो
हर दाग के चक्कर में अपना दामन तो नहीं खोया जाता
 और ये कौन तरीका ढूंढा है दामन से दाग छुडाने का
दागी दामन को गलियों में सरे आम नहीं धोया जाता
 लूट हजारो और लाखों तू जो सैकड़ों बांटता फिरता है
 यूँ पुण्य नहीं हासिल होता यूँ पाप नहीं धोया जाता
 शीशे के घरों में रह्ते हो और पत्थर फैंकते हो मुझ पर
 शुक्र करो मुझ से अपना कभी होश नहीं खोया जाता
 उतना ना सही कुछ कम ही सही है अब भी माल तेरे घर में
ऐसे में खुले दरवाजे रख बेफिक्र नहीं सोया जाता

2 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

अच्छी रचना है।

***राजीव रंजन प्रसाद

Krishan lal "krishan" said...

shukriya rajeev jii