Monday, May 12, 2008

उस रोज़ मुझे तुम ऐसे मिली

उस रोज़ मुझे तुम ऐसे मिली सर्दी में हो जैसे धूप खिली
 गर्मी में धूप के मारे को जैसे मिल जाये घनी छाया
 सदियों के प्यासे को जैसे जल का कोई स्त्रोत नजर आया
 या कहो कि चाहत थी जल की पर मुझ को अमृतधार मिली
 उस रोज़ मुझे तुम ऐसे मिली-----------
 बिन दिशा भटकते इन्सा को जैसे कोइ दिशा दिखाई दी
 तन्हाई से ऊबे इन्सा को पायल की झनक सुनाई दी
जैसे घनघोर अन्धेरे मे एकाएक कोई ज्योत जली
उस रोज़ मुझे तुम ऐसे मिली------
ज्यों भूख का मारा इन्सा कोई रोटी की थाली पा जाये
 या मन में बसी तस्वीर कोई जिन्दा ही सामने आ जाये
 या कहो कि जैसे बच्चे को मन पसन्द सी आइस क्रीम मिली
 उस रोज़ मुझे तुम ऐसे मिली------
या किसी तपस्वी के समक्ष इष्टदेव अचानक आ जाये
या फिर फांसी के तख्त चढा कोई प्राणदान ज्यों पा जाये
या कहो कि मांगने वाले को मुंह मांगी कोई मुराद मिली
उस रोज़ मुझे तुम ऐसे मिली------

6 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

उस रोज़ मुझे तुम ऐसे मिली------

अच्छी उपमायें दीं हैं आपने रचना में..

***राजीव रंजन प्रसाद

Krishan lal "krishan" said...

Rajiv ji
Bahut bahut shukriya upamaao ki prshansaa ke liye

Krishan lal "krishan" said...

kirti ji
thanks for appreceiating the work as good

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.

dpkraj said...

कृष्ण जी आपकी कविता बहुत बढि़या है पर मुझे लगता है कि आपने टाईप कर पेस्ट किया है। अगर आप कभी ऐसे कविता पेस्ट करें तो कंपोज बटन बंद कर दिया करें तब कविता ऐसे ही आयेगी जैसे आपने टाईप की है। यह एकदम गद्य की तरह लग रही है।
दीपक भारतदीप

Krishan lal "krishan" said...

Deepak ji
shukriya sujhaav ke liye aur kavitaa ko pasand karne ke liye
Samir ji ,
aap kaa bahut bahut shukriyaa hausala badhaane ke liye