शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Thursday, May 15, 2008
मैंने एक कवि से पूछा
मैंने
एक कवि से पूछा
कवि
तूँ क्यों कवितायें बनाता है
बातों से किसी के सुख दुख नहीं मिटते
फिर क्यों शब्दों का तू जाल फैलाता है
कवि बोला
मित्र क्या बतांऊ
धर्म और समाज मे
रीति और रिवाज़ मे
आसपास या दूर दराज़ में
कितनी बुराइयों का डेरा है
कहीं गरीबी कहीं अशिक्षा
तो कही अन्धविश्वासों ने घेरा है
क्या बेगाना क्या सगा
सब ने है सब को ठगा
मुझे पूर यकीन हो गया है
मानव संवेदनहीन हो गया है
मित्र देता है दगा
जीवन साथी है बेवफा
ये सब देख दुखी हो जाता हूँ
लेकिन कुछ कर पाने में खुद को असहाय पाता हूँ
कविता के माधयम से
औरो का आह्ववान करता हूँ
चुप हो जाता हूँ
मैने कहा ,मित्र, अब मेरी समझ में आया
कविता के माधयम से
तुम ने
समाज सुधार का बीड़ा है उठाया
लेकिन , कवि मित्र
कभी तुम्हारे मन में ये ख्याल नहीं आया
कि, कोई और , वो क्यों करेगा
जिसे करने की तुम ने कोशिश ही नहीं की
या जिसे तूँ खुद कर नहीं पाया
क्या तुझे अपनी सोच, अपने दर्शन् शास्त्र पर
कम यकीन है
या तूँ भी वास्तव में
औरो की तरह संवेदनहीन है
उस रोज़ एक अनाथ बच्चे पर
तुम्हारी कविता पढ़ी
उसके नगे पाँव, फटे पुराने वस्त्र
तुम्हे सब नज़र आया
तुमने इस ओर धयान समाज को दिलाया
चलो कोई तो फर्ज़ निभाया
पर कवि महोदय ये तो बता
क्या तुम सचमुच इतने साधन हीन हो
कि तुम नहीं सकते एक भी अनाथ बच्चे को अपना
या किसी गरीब बच्चे को पढ़ा
उसका जीवन सको बना
यदि चन्द साधन-सम्पन्न कवि
एक एक अनाथ बच्चे को भी अपनाते
तो अब तक कई बच्चों के जीवन संवर जाते
भूलते हो ,
कविता केवल शब्दों में ही नही होती
जीवन में भी होती है
और जीवन में,
कविता के लिये, तन ,मन, धन लगाना पड़ता है
लेकिन तू ठहरा कवि
जो केवल शब्दों मे ही कविता गढता है
ऐसे में कौन तेरी मानेगा
जब वो ये जानेगा
कि तूँ इस बुराई रूपी रावण से पंगा लेने के लिये
केवल दूसरों को उकसाता है
रावण मर गया तो ठीक ,वरना तेरा क्या जाता है
मित्रवर, ऐसे
समाज सुधार कहाँ आ पाता है
कवि,
तेरी सच्ची कविता उस दिन बन पायेगी
जब शब्द जाल से निकल
तेरी जिन्दगी खुद कविता बन जायेगी
उस रोज़ कोईं नहीं पूछेगा
कवि
तू क्यों कवितायें बनाता है
क्यों शब्दों का जाल फैलाता है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
Sahi farmaya.....Kaviyo ke zasbato ko
कीर्ति जी शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
sunder kavita sunder darshan
Apuran ji
aapka kavita ko pasand karne ke liye aur blog par aane ke liye dhanywaad
bahut hi sahi baat itni achchhi kavita ke madhyam se kahi hai aapne. Man sach main padh ke prasann ho gaya. Achchhi kavita padh ke ek taajgi si mahsoos hoti hai. Bahut badhai aapko.Khud ko kendra main rakh kar samasya ko samjhana sarhaniya prayas hai.
Baat bahut chhoti hai per hai dumdaar. Aur sabhi shitaykaron aur lekhakon ko apni ye zimmedari samjhni chahiye ki jo wo kahte hain usko mahsoos bhi karen.
anindya sharmaa jii
bahut dinoM ke baad ek aisi tippani aayi hai jise maine kaum se kum do baar to padhaa hai. Vo is liye ke ye ek aise shakas ne bhejii hai jise khud jimmevaarii kaa ahsaas hai nahi to aisi tippani na hoakar kuchh aur hii hotii.Aap kaa bahut bahut shukriya. Aap sach puuchhe to kavita se sundar to aapkii tippani lagi.
Varna mai to soch rahaa tha bahut se kavi log khafa hi na ho jayen.
Post a Comment