क्यों व्यर्थ यत्न तुम करते हो बान्धने का मुझे बन्धन मे
मै सूखी रेत के जैसा बन्द मुठठी से फिसलता जाँऊंगा
मै दिवाना मन का मौजी जिस राह चला चलता ही गया
किसी राह में खुशिया खडी मिली किसी राह मे गम मिलता ही गया
घर फूँक तमाशा देखा है मैने इन दुनिया वालो का
तब जाकर उत्तर पाया है जीवन के कठिन सवालों का
जब तक नीँद नही खुलती सच्चे सब सपने लगते है
और जब तक वक्त नही पडता सारे ही अपने लगते हैं
जीवन साथी भी जीवन भर यहाँ साथ निभा नहीं पाता है
तुम से क्या उम्मीद कि तुम से कुछ दिन का ही नाता है
क्यो बान्धू मै तुम से खुद को इस बन्धन से क्या होना है
तुम से तो रिश्ता निभना नही दुनिया से भी रिश्ता खोना है
मै सूखी रेत के जैसा बन्द मुठठी से फिसलता जाँऊंगा
मै दिवाना मन का मौजी जिस राह चला चलता ही गया
किसी राह में खुशिया खडी मिली किसी राह मे गम मिलता ही गया
घर फूँक तमाशा देखा है मैने इन दुनिया वालो का
तब जाकर उत्तर पाया है जीवन के कठिन सवालों का
जब तक नीँद नही खुलती सच्चे सब सपने लगते है
और जब तक वक्त नही पडता सारे ही अपने लगते हैं
जीवन साथी भी जीवन भर यहाँ साथ निभा नहीं पाता है
तुम से क्या उम्मीद कि तुम से कुछ दिन का ही नाता है
क्यो बान्धू मै तुम से खुद को इस बन्धन से क्या होना है
तुम से तो रिश्ता निभना नही दुनिया से भी रिश्ता खोना है
2 comments:
बढ़िया है.
samiir jii
bahut bahut shukriya haunsla bdhaane ke liye
Post a Comment