Thursday, May 29, 2008

घर फूँक तमाशा देखा है मैने इन दुनिया वालो का

क्यों व्यर्थ यत्न तुम करते हो बान्धने का मुझे बन्धन मे
 मै सूखी रेत के जैसा बन्द मुठठी से फिसलता जाँऊंगा
 मै दिवाना मन का मौजी जिस राह चला चलता ही गया
 किसी राह में खुशिया खडी मिली किसी राह मे गम मिलता ही गया
 घर फूँक तमाशा देखा है मैने इन दुनिया वालो का
तब जाकर उत्तर पाया है जीवन के कठिन सवालों का
 जब तक नीँद नही खुलती सच्चे सब सपने लगते है
और जब तक वक्त नही पडता सारे ही अपने लगते हैं
 जीवन साथी भी जीवन भर यहाँ साथ निभा नहीं पाता है
 तुम से क्या उम्मीद कि तुम से कुछ दिन का ही नाता है
 क्यो बान्धू मै तुम से खुद को इस बन्धन से क्या होना है
तुम से तो रिश्ता निभना नही दुनिया से भी रिश्ता खोना है

2 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.

Krishan lal "krishan" said...

samiir jii
bahut bahut shukriya haunsla bdhaane ke liye