डूबता ना किस तरह तूँ ही बता मेरे खुदा
एक तिनके का सहारा था सो वो भी छिन गया
लेने या देने का सम्बन्ध कोई तो बाकी चाहिये
पर अपना रिश्तेदार तो सारा हिसाब गिन गया
एक तिनके का सहारा था सो वो भी छिन गया
लेने या देने का सम्बन्ध कोई तो बाकी चाहिये
पर अपना रिश्तेदार तो सारा हिसाब गिन गया
मेरा कोई गुनाह उसने माफ तो करना था क्या
अपने किये गुनाह भी वो मेरे नाम गिन गया
जिन्दगी के सफर में मित्रों का साथ यूँ रहा
थे खोटे सिक्के जेब में बाज़ार थैले बिन गया
थे खोटे सिक्के जेब में बाज़ार थैले बिन गया
उस समय चिराग लेकर दोस्त सारे आ गये
रात सारी कट गयी , चढ जब उजरा दिन गया
6 comments:
कृष्ण जी
सुन्दर लिखा है-
जिन्दगी के सफर में मित्रों का साथ यूँ रहा
थे खोटे सिक्के जेब में बाज़ार थैले बिन गया
बधाई स्वीकारें।
Shobha ji. AApka mere blog pe hardik swagat hai. rachanaa ko pasand karne ke liye shukriya
मेरा कोई गुनाह उसने माफ तो करना था क्या
अपने किये गुनाह भी वो मेरे नाम गिन गया
क्या बात है भाई .... बहुत बढ़िया.
क्या बात है, बहुत खूब!!!
मीत जी और समीर जी
आप दोनो का जितना शुक्रिया अदा किया जाये उतना कम है आप हमेशा और बेहतर लिखने को प्रेरित करते रहते हैं इस गज़ल को पसन्द करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
मीत भाई एक राज की बात बताऊँ जो शेर आप ने पसन्द किया है वो काल्प्निक नही असली शेर है वही लिखा है ज़ो मेरे साथ गुजरा है एकदम जिन्दगी का कड़वा सच
bahut badiya litha h
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