जब तुम भी हमारे हो, और वो भी हमारा है
तब तुम ही कहो, हम को, किस शख्स ने मारा है
शीशा ही नहीं टूटा, अक्स भी टूटा है
पत्थर किसी अपने ने, बेरहमी से मारा है
उस पार जो पहुंचे है, किस्मत के सिकन्दर हैं
इस पार जो रह गये हैं, वो भी कुछ बेहतर हैं
उस शख्स की हालत का, अन्दाजा करो यारों
माझी ने जिसे लाकर, मझधार उतारा है
उसका तो दिखावा था ,हम सच ही समझ बैठे
कश्ती भी हमारी है , माझी भी हमारा है
कोई खोट तेरे दिल का, चेहरे से ना पढ़ पाया
तुमने अपना चेहरा, किस कदर संवारा है
क्या लिखा किताबों में ,उसकी तो तुम जानो
मैं तो वो कहता हूँ ,जो मैने गुजारा है
जो जख्म हैं सीने पे ,दुश्मन की इनायत हैं
पर पीठ में ये खंजर, अपनो ने उतारा है
अब तुम ही कहो हमको किस शख्स ने मारा है
तब तुम ही कहो, हम को, किस शख्स ने मारा है
शीशा ही नहीं टूटा, अक्स भी टूटा है
पत्थर किसी अपने ने, बेरहमी से मारा है
उस पार जो पहुंचे है, किस्मत के सिकन्दर हैं
इस पार जो रह गये हैं, वो भी कुछ बेहतर हैं
उस शख्स की हालत का, अन्दाजा करो यारों
माझी ने जिसे लाकर, मझधार उतारा है
उसका तो दिखावा था ,हम सच ही समझ बैठे
कश्ती भी हमारी है , माझी भी हमारा है
कोई खोट तेरे दिल का, चेहरे से ना पढ़ पाया
तुमने अपना चेहरा, किस कदर संवारा है
क्या लिखा किताबों में ,उसकी तो तुम जानो
मैं तो वो कहता हूँ ,जो मैने गुजारा है
जो जख्म हैं सीने पे ,दुश्मन की इनायत हैं
पर पीठ में ये खंजर, अपनो ने उतारा है
अब तुम ही कहो हमको किस शख्स ने मारा है
6 comments:
क्या लिखा किताबों में ,उसकी तो तुम जानो
मैं तो वो कहता हूँ ,जो मैने गुजारा है
अच्छी रचना है कृशन जी..
***राजीव रंजन प्रसाद
raajeev ji
bahut bahut shukriyaa blog par aane ke liye ayr ek utsahvardhak tipanni ke liye. Thanks again
क्या लिखा किताबों में ,उसकी तो तुम जानो
मैं तो वो कहता हूँ ,जो मैने गुजारा है
सुन्दर
बहुत बढ़िया है जनाब!!
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
समीर जी,
आपका हिन्दी प्रेम देख कर दिल खुश हो उठा । आआप जैसे लोग ही इतिहास बनाते भी और मोड़ते भी है। मै हिन्दी मे पिछले 15-16 साल से लिख रहा हूँ आफिस मे हिन्दी की हर प्र्तियोगिता मे हिस्सा लेता हूँ अन्य अधिकारियों को भी प्रेरित कर्ता हुन कि वो भिओइ हिस्सा ले । र्ही ब्लोग खुल्वाने की बात तो कल से वो भी शुरू ज्ल्द ही 8-10 ब्लोग खुलवा देते हैं
कविता को पसन्द करने के लिये शुक्रिया
राकेश जी
आपका मेरे ब्लाग पर हर्दिक अभिनन्दन
गज़ल के इस शेर को पसन्द करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया ।
वैसे राकेश जी सच्चाई भी यही है कि मे जीवन के कड़वे मीठे अनुभवों को सीधे सरल शब्दो मे डाल कर लोगों के सामने प्रस्तुत करता हूँ किताबी फार्मूले लागू नही करता
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