Wednesday, June 11, 2008

भूख इन्सान को इन्सा नही रहने देती

भूख इन्सान को इन्सा नही रहने देती
 अच्छे अच्छों को ये शैतान बना देती है
 कूड़े के ढेर मे खाने को जो कुछ ढूँढा करे
 भूख इन्साँ को , वो हैवान बना देती है
 पेट भर जाने पे भगवान नजर आता है
 खाली पेटो को ये शैतान मिला देती है
 खाली पेटो को नैतिकता का सबक दे ना कोई
 भूख इस पाठ को जड़ से ही भुला देती है
 ना कोई रिश्ता बडा है न ही कोई नाता बडा
 भूख हर रिश्ते का कद बौना दिखा देती है
 है वही शख्स बड़ा और वही शै है बडी
 वक्त पे भूख जो इन्सा की मिटा देती है

3 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया लगी यह रचना.

अनुनाद सिंह said...

इसका उल्टा ज्यादा सही है: "पेट यदि नाक तक भरा हो तो भी आदमी, आदमी नहीं रह जाता"

Krishan lal "krishan" said...

समीर जी और अनुनाद सिह जी
आप का शुक्रिया ब्लाग पर आने और रचना को पढ़ने के लिये