भूख इन्सान को इन्सा नही रहने देती
अच्छे अच्छों को ये शैतान बना देती है
कूड़े के ढेर मे खाने को जो कुछ ढूँढा करे
भूख इन्साँ को , वो हैवान बना देती है
पेट भर जाने पे भगवान नजर आता है
खाली पेटो को ये शैतान मिला देती है
खाली पेटो को नैतिकता का सबक दे ना कोई
भूख इस पाठ को जड़ से ही भुला देती है
ना कोई रिश्ता बडा है न ही कोई नाता बडा
भूख हर रिश्ते का कद बौना दिखा देती है
है वही शख्स बड़ा और वही शै है बडी
वक्त पे भूख जो इन्सा की मिटा देती है
अच्छे अच्छों को ये शैतान बना देती है
कूड़े के ढेर मे खाने को जो कुछ ढूँढा करे
भूख इन्साँ को , वो हैवान बना देती है
पेट भर जाने पे भगवान नजर आता है
खाली पेटो को ये शैतान मिला देती है
खाली पेटो को नैतिकता का सबक दे ना कोई
भूख इस पाठ को जड़ से ही भुला देती है
ना कोई रिश्ता बडा है न ही कोई नाता बडा
भूख हर रिश्ते का कद बौना दिखा देती है
है वही शख्स बड़ा और वही शै है बडी
वक्त पे भूख जो इन्सा की मिटा देती है
3 comments:
बढ़िया लगी यह रचना.
इसका उल्टा ज्यादा सही है: "पेट यदि नाक तक भरा हो तो भी आदमी, आदमी नहीं रह जाता"
समीर जी और अनुनाद सिह जी
आप का शुक्रिया ब्लाग पर आने और रचना को पढ़ने के लिये
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