Monday, June 1, 2009

जब तक कोई मोड़ नहीं आता हर रिश्ता साथ निभायेगा

रिश्तों की हकीकत इतनी है,
और, इस से ज्यादा कुछ भी नहीं

कोई गर्ज़ रही, तो रिश्ता चला,
 नहीं पूरी हुई, तो टूट गया

तूं नाहक ढूंढता फिरता है,
 इन रिश्तों में गहराई को

 ये उस मटके से रीते हैं,
हो जिसका पैंदा फूट गया

तूं आज इसे ना मान, मगर
 ,इक रोज़ समझ आ जायेगा

जब तक कोई मोड़ नहीं आता
 हर रिश्ता साथ निभायेगा

 सब शाबासी देंगें तुझको
तूं जब तक बोझ उठायेगा

 पर राह में छोड़ के चल देंगें
जब बोझ तूं खुद बन जायेगा

 रिश्तों की ह्कीकत इतनी है
और इससे ज्यादा कुछ भी नहीं

1 comment:

निर्मला कपिला said...

सब शाबाशी देंगे तुझ को जब तक तू बोझ उठायेगा
सब छोड के चल् देम्गे जब तू खुद बोझ बन जायेगा
बहुत सुन्दर सत्य अभिव्यक्ति है आभार्