हादसे हद से बढते जा रहे हैं
हम अपने कद में घटते जा रहे हैं
रफू कैसे करुंगा मैं अपना चाक दामन
रफू के साथ ही सुराख बढते जा रहें हैं
बहुत मुश्किल है अब तो नग्न होने से बचना
बदन पे वस्त्र तो हर रोज घटते जा रहें हैं
ना जाने कौन मौसम में मुझे ज़ख्मी किया तुमने
कि सारे ज़ख्म ही नासूर बनते जा रहे हैं
समय के साथ भर जाते ज़ख्म कोई गैर जो देता
ये मेरे ज़ख्म तो हर रोज़ बढते जा रहे हैं
दीया बुझाने का इल्ज़ाम ना ले सब्र कर थोड़ा
हवांए तेज हैं दीये खुद ही बुझते जा रहे हैं
हम अपने कद में घटते जा रहे हैं
रफू कैसे करुंगा मैं अपना चाक दामन
रफू के साथ ही सुराख बढते जा रहें हैं
बहुत मुश्किल है अब तो नग्न होने से बचना
बदन पे वस्त्र तो हर रोज घटते जा रहें हैं
ना जाने कौन मौसम में मुझे ज़ख्मी किया तुमने
कि सारे ज़ख्म ही नासूर बनते जा रहे हैं
समय के साथ भर जाते ज़ख्म कोई गैर जो देता
ये मेरे ज़ख्म तो हर रोज़ बढते जा रहे हैं
दीया बुझाने का इल्ज़ाम ना ले सब्र कर थोड़ा
हवांए तेज हैं दीये खुद ही बुझते जा रहे हैं
4 comments:
Gazal ke bhaav bahut hi sundar hain...parantu is sher par ek baar punarvichaar kar len...
रफू कैसे करुंगा मैं अपना चाक दामन
बहुत मुश्किल है अब तो नग्न होने से बचना
sabhi sheron ke beech yah kuchh bejod sa lag raha hai..ek baar punrvichaar kar punah preshit kar den.
ranjan jii
aap kaa bahut bahut shukriya ghazal psaand karne ke liye. type karte hue ek line idhar se udhar ho gayee thi jo atpati lag rahi thi. Ab therek kar di hai. dhyan dilane ke liye bahut bahut shukriya.
aap jaise jagruk sathiyon se bahut kuchh seekhne ko mil sakta hai.
Ranjna jii
Aap ka bahut bahut shukriya ghazal psaand karne ke liye. type karte hue ek line idhar se udhar ho gayee thi jo atpati lag rahi thi. Ab therek kar di hai. dhyan dilane ke liye bahut bahut shukriya.
aap jaise jagruk sathiyon se bahut kuchh seekhne ko mil sakta hai.
01 June, 2009 16:45
बहुत सुन्दर!!
Post a Comment