Wednesday, June 3, 2009

तुम लाख किसी के अपने बनो कोई लाख कहे तुमको अपना

कोई प्यार कहे या वफा कहे जो चाहे रंग दे रिश्तों को
हर रग के पीछे छुपी हुई सच में तो कोई जरूरत है

तुम लाख किसी के अपने बनो कोई लाख कहे तुमको अपना
 यहाँ अपना पराया कुछ भी नहीं जो कुछ है सिर्फ जरूरत है

 वो शख्स कहां रहता अपना चाहे कितना भी अपना हो
 जो पूरी नहीं कर पाता है जैसी जब हमें जरूरत है

दिन रात दुहाई देता है जिन रिश्तों में गहराई की
उतने गहरे रिश्ते हैं यहाँ बस जितनी गहरी जरूरत है

 रिश्ता वो लम्बा चलता है कोई गरज सी जिसमें बनी रहे
 ये गरज भी इतनी बुरी नहीं रिश्तों की ये पहली जरूरत है

कभी सोचा है तेरा मेरा रिश्ता अब तक क्यों कायम है
कुछ तेरी जरूरत है मुझ को कुछ मेरी तुझे जरूरत है

तुम्हे ठीक लगे तो आओ फिर नये रिश्ते का आगाज करें
 तुम मेरी जरूरत को समझो मै समझूँ क्या तेरी जरूरत है

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

तुम लाख किसी के अपने बनो कोई लाख कहे तुमको अपना
यहाँ अपना पराया कुछ भी नहीं जो कुछ है सिर्फ जरूरत है

Unknown said...

Kya khub likha h wah wah...

Unknown said...

Kya khub likha h wah wah...