Thursday, June 4, 2009

हदों में रहके कभी प्यार हो नही सकता


हदों मे रहके तो व्यापार होते आयें हैं
 हदों में रहके कभी प्यार हो नही सकता

हदों में रहके तुम इन्कार कर तो सकते हो
 हदों में रहके पर इकरार हो नहीं सकता

तूँ जिस तरह से किनारे को पकडे बैठा है
 आज क्या तूँ कभी उस पार हो नहीं सकता

जो अपने यार की उम्मीद पे ना उतरे खरा
 वो रिश्तेदार ही होगा वो यार हो नही सकता

खोने और पाने का हिसाब जब लगे लगने
तो फिर वो दोस्ती होगी वो प्यार हो नहीं सकता

अगर पाना है मंजिल को तो घर को छोडना होगा
 कैदी दीवारों का मंजिल का हकदार हो नही सकता

निकलना दायरों से तेरा लाजिम है तूँ मेरी मान
 रह के दायरों मे तूँ मेरा प्यार हो नहीं सकता

 रिश्तों में हदें होती हैं नहीं प्यार में होती
 हदों में रिश्ते निभ सकते हैं प्यार हो नहीं सकता

खुले आकाश मे उडना अगर चाहत है तो सुन ले
हदों के पिंजरे मे रहके ये मुमकिन हो नहीं सकता

 निकल जाती है गाडी सामने से उस मुसाफिर के
 जो रहते वक्त गाडी मे सवार हो नहीं सकता

मेरे तन मन पे जब अधिकार तेरा , सिर्फ तेरा है
 तो क्यों तुझ पर यही अधिकार मेरा हो नहीं सकता

9 comments:

शोभा said...

अति सुन्दर

अनिल कान्त said...

kya khoob likha hai
waah !!

Science Bloggers Association said...

गजब कर दिया आपने। मजा आ गया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

vandana gupta said...

lajawab

Nidhi said...

प्यार मे आप केवल अपनी बात कह सकते हो..
मनाने का प्रयास कर सकते हो...
आपके प्यार की हद नही...
दूजे को उस हद को पर करने का सहस नही...

Krishan lal "krishan" said...

Shobha ji aur anil kant ji
Aap ka bahut bahut shukriya protsahit karne ke liye.

Krishan lal "krishan" said...

Rajnish ji aap kaa bahut bahut dhanywad ghazal ki tareef karne ke liye.

Krishan lal "krishan" said...

Vandana ji ek shabd me aapne itni tareef kar di shukriya.

Krishan lal "krishan" said...

Nidhi trivedi mishra ji Aap ner bilkul sahi pharmaya hai. shukriya.