Wednesday, February 6, 2008

महक

चाँद और तारों की ख्वाहिश, दिल मे क्यों पलने लगे ये दिल कोई बच्चा नहीं जो हर शै को मचलने लगे महक चारों ओर है और गुलशन का कुछ पता नहीं लगता है फूल आजकल हैं दिल मे मेरे खिलने लगे हम किसी भी महक के कायल नहीं थे आजतक ये कौन सी है महक जिससे हम हैं विचलने लगे सुराग तक उस महक का मिलता नहीं ढूंढे से भी मन जिससे महकने लगा दिल-ओ-जिस्म फिसलने लगे आप का कहना है वाजिब नहीं देखने की शै महक मै क्या करूँ जो देखने को दिल ये मचलने लगे हाँ पहले की तरह मैं अब, करता नहीं इजहारे-इश्क आईना देखा है जब से, मेरे होंठ हैं सिलने लगे आज तो सब रास्ते , मुझे बन्द आते हैं नजर शायद कल दिल की गली से, रस्ता निकलने लगे पर पिछले अरमानों का हश्र देखते तो फिर कभी ना पलते ये अरमां नये, जो दिल में हैं पलने लगे ये तो है महक , इन मुठिठयों मे कैद होने की नहीं नाहक इसे क्यों फूल समझ, कोई हाथ मसलने लगे

3 comments:

Anonymous said...

bahut khub kaha,mehek mutthi mein kaid nahi ho sakti,haat phul samajh ke kyun masalne lage.

Krishan lal "krishan" said...

जो भी हमारे पास था कहने को , सब है कह दिया
अब जिसको जो अच्छा लगा,उसने वो ही चुन लिया
मेरे लिये एक शब्द की तारीफ भी कुछ कम ना थी
और आपने तो पूरी इक लाईन को अच्छा कह दिया
शुक्रिया महक जी आपका, बहुत बहुत शुक्रिया॥

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Anonymous said...

achchhii ghazal