Saturday, February 9, 2008

आओ वैलेन्टाईन मनायें

कुछ और बने ना बने हम से चलो किसीको वैलेन्टाईन बनायें कोई और त्योहार मने ना मने सब मिलकर वैलेन्टाईन मनायें वैश्वीकरण के दौर में शायद कुछ भी नहीं बचेगा अपना अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता बन्द कर अब ये मन्त्र जपना आज की पीढी इन्हें समझती किसी बीती रात का झूठा सपना अब तूं भी निकल सपनों से बाहर चल वैलेन्टाईन कोई ढूंढ के लायें कोई और त्योहार मने ना मने सब मिलकर वैलेन्टाईन मनायें अपने त्योहारों में क्या है वैलेन्टाईन तो नया नया है होली में हुड़दंग से ज्यादा क्या रखा है तू ही बता सब के चेहरे गंदे करना और भला होता है क्या और दिवाली में भी अक्सर ये ही तो है देखा जाता इधर बम तो उधर पटाखा रात रात भर बजता जाता प्रदूषण बढ जाता इतना नहीं ठीक से, कोई सो पाता इसी तरह, अपने त्योहारों में कुछ और कमियां ढूंढ के लाओ कुछ मै तुम को बतलाता हूँ और कुछ तुम मुझ को बतलाओ कमियां दूर नहीं होनी, कह अपने त्योहारो को छोड़ो वैलेन्टाईन जैसे पश्चिम के त्योहारों से नाता जोड़ो अब बजने दो संगीत पश्चिमी चलो हम भी गीत पश्चिमी गायें कुछ और बने ना बने हम से चलो किसी को वैलेन्टाईन बनायें कोई और त्योहार मने ना मने आओ मिलकर वैलेन्टाईन मनायें

2 comments:

Anonymous said...

वास्तव में अति सुन्दर कविता जो कुछ सोचने पर मजबूर करती है ।
वैलेन्टाईन दिवस के बढते दिवानेपन पर आप ने कितने प्यार से जोरदार प्रहार किया है । हम जैसे पाठकों की भावनाओं को आवाज देने के लिये धन्यवाद

Anonymous said...

kavita bahut sundar hai,par apne desh ke tyoharon ke saath ,hum to khub valentine day bhi manate hai,aaj ke yug mein pyar rishton mein basana bhi zaruri hai,wo rishta,parents se ho,bhai bahan ka,dosti ka,koi bhi.