Friday, March 21, 2008

क्यों अपने रंग रूप का ,इतना तुझे गरूर है

क्यों अपने रंग रूप का इतना तुझे गरूर है
  है अब जवानी की दोपहरी तो सान्झ कितनी दूर है
 इक बार सांझ हो गई तो रात भी घिर आयेगी
फिर लाख तूँ करना यत्न ये बात ना रह पायेगी
 आँखों से कुछ दिखना नहीं फिर नैन लडने किस से है
 मुँह में दाँत ही ना होंगें तो हंसके किसको दिखायेगी
 बाल सब सफेद होंगे शायद झडने भी लगेंगे
फिर ये जाल जुल्फों का किस पे तूं फैलायेगी
 ना उमंग कोई मन में होगी ना कशिश तेरे तन में होगी
 किस से फिर होगा मिलन तू किस से मिलने जायेगी
 इस लिये कहता हू मेरी मान कल पे टाल मत
ढूंढ हर जवाब मुझ में कर खुद से तू सवाल मत
 जो मिला है आज वक्त हर रोज मिल पाता नहीं
कल का क्या है ये कभी आता कभी आता नहीं
 कुदरत की दी सौगात का कर पूरा इस्तेमाल तू
यू भी ढल ही जायेगा हुस्न कितना भी संभाल तू
 चाहने वालों की चाहत जो कोई ठुकराता है
 ता उम्र चाहत के लिये फिर खुद भी तरस जाता है

5 comments:

Anonymous said...

बहुत ही बढ़िया कविता लगी ये शेर और भी अच्छा लगा

"जो मिला है आज वक्त हर रोज मिल पाता नहीं
कल का क्या है ये कभी आता कभी आता नहीं"

रवीन्द्र प्रभात said...

बढिया है ,आपको भी होली की शुभकामनाएं !!

Krishan lal "krishan" said...

रविन्दर प्रभात जी ,
धन्यवाद और आपको भी होली की बहुत बहुत शुभ कामनायें

परमजीत सिहँ बाली said...

एक अच्छी पोस्ट के सा्थ ,होली के अच्छे रंग बिखेरे हैं। होली मुबारक।


कुदरत की दी सौगात का कर पूरा इस्तेमाल तू
यू भी ढल ही जायेगा हुस्न कितना भी संभाल तू

चाहने वालों की चाहत जो कोई ठुकराता है
ता उम्र चाहत के लिये फिर खुद भी तरस जाता है

Krishan lal "krishan" said...

शुक्रिया परम्जीत बाली जी रचना को पसन्द करने के लिये होली की शुभ कामनायें