Tuesday, April 14, 2009

बेसबब मचा है शोर कि मौसम बदल गये हैं
सच तो है ये मेरी जां हम तुम बदल गये हैं
बस बात बात मे ही सब बदल गयी है बात
कुछ तुम बदल गये हो कुछ हम बदल गये हैं
बेवजह उदास रहना कुछ बन गयी है आदत
और कुछ खुशी के सारे आलम बदल गये है
अब खुल के हंसना रोना है भूलने लगे सब
खुशियों बदल गयी है मातम बदल गये हैं
ना जाने जख्म कोई भ्ररता नही क्यों सदियों
नश्तर बदल गये या मरहम बदल गये हैं
कोई जुल्म देखकर भी नहीं खून खोलता
अब बदला है कुछ लहु या दमखम बदल गये हैं
लहरा रहा है अब तो हर शख्स अपना झन्डा
बदली है कुछ हवा कुछ परचम बदल गये हैं
ये दोस्ती,मोहब्बत ये जन्मों जन्म के रिश्ते
बदली है जब जरूरत उसी दम बदल गये है
मजबूरीयों को हिम्मत का नाम दे रहे सब
अब सूली पे चढाने के नियम बदल गये है
कभी खुदकशी शहादत कभी हादसा शहादत
शहादत बदल गयी  शहीदएआजम बदल गये हैं

2 comments:

अनिल कान्त said...

kitna sach likha hai aapne ....aapki rachna ki jitni bhi tareef ki jaaye wo kam hai


मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

"अर्श" said...

ना जाने जख्म कोई भ्ररता नही क्यों सदियों
नश्तर बदल गये या मरहम बदल गये हैं
kya she'r kahe hai aapne saare ke saare khub ......bahot achhi gazal ban padi hai...


arsh