लंगड़े घोड़े की सवारी और जान की बाज़ी लगी
हिम्मत तो जरा देखिये मरियल से घुड़सवार की
आसमां छूने की जिद्द है उस परिंदे की अज़ब
जिसने पिंज़रे की कभी देहलीज़ तक नही पार की
रहना एक पिंज़रे में बन्द और आसमां तक की उड़ान
ख्वाब बेमतलब का है ये बातें है बेकार की
खुद तो है दर दर भटकता कोई सहारा ढूंढ़ता
दवा करता है कईयों की जिन्दगी संवार दी
ना दुआ की ना दवा दी ना ज़ख्मों पर मरहम लगा
कद्र क्या करनी बता ऐसे तीमारदार की
वक्त रहते ही संभल जाता तो कोई बात थी
चोट खाई बेवज़ह तूने कुदरत की मार की
मै तो माफ कर दूँ गलती कुदरत कभी करती नही ,
अहसानफरामोश की , खुदगर्ज़ की गद्दार की
थोड़ा किनारा क्या दिखा कश्ती से कूद मार दी
सोचा ज़रूरत क्या रही नाविक कि या पतवार की
किनारे के पास आके भी डूबती है कश्तियाँ
ये बात भूलने की गलती क्यों तुमने बार बार की
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