शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Wednesday, December 8, 2010
इतना हसीन हमसफर मिला भी तो किस मोड़ पर
Tuesday, December 7, 2010
जब से वो हमसे और हम उनसे हैं मिलने लगे
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे
डर रहा कि फिर नया कोई जख्म ना मिले हमें
उम्मीद ये कि शायद किस्मत अब से बदलने लगे
डर डर के राहे इश्क में रखना था हर इक कदम
इक बार क्या देखा कदम ख़ुद बखुद बढ़ने लगे
ना कोई चाहत थी ना उम्मीद ही दिल में कोई
वो पहलू में बैठे तो अरमां फिर से मचलने लगे
अब ये भी कोई यार का घर में आना है बता
आये सुबह, दो बात की , हुई सांझ तो चलने लगे
इससे तो अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई
मरहम लगाये बिन वो वापिस घर को हैं चलने लगे
Tuesday, November 30, 2010
वफा के नाम पे अब कुछ नही होता हासिल
ना सही हमको किसीको तो बताया कीजे
गम छुपाने का किसे शौक है पर ये तो बता
है भला कौन यहाँ जिस पे भरोसा कीजे
लोग कहते हैं कि गम बांटो तो घट जाता है
Friday, November 26, 2010
तेरा पहलु से उठ जाना कभी अच्छा नही लगता
यूं भी तकलीफ होती है यूं भी तकलीफ होती है
तेरा पहलु से उठ जाना कभी अच्छा नही लगता
बना के दूरियां बैठो तो भी तकलीफ होती है
किसी का जब मरा कोई तसल्ली दी तसल्ली दी
मगर मरता है जब अपना बहुत तकलीफ होती है
यहाँ रिश्तो के मरने की कोई परवाह नही करता
फिर रिश्तेदार मरने पे कहाँ तकलीफ होती है
तेरा आना ना आना एक सा अब तो लगा लगने
वो भी तकलीफ देता है यूँ भी तकलीफ होती है
तेरा दामन कोई पकडे तो क्या जाने क्या हो जाए
तेरा कोई नाम भी लेले तो भी तकलीफ होती है
ना जाने किस कदर तू दिल के हर कोने आ पहुंचा
भुलाऊं या करूं तुझे याद बहुत तकलीफ होती है
Monday, August 23, 2010
ये दुनिया है यहाँ पर लूटना फितरत है इंसां की
गरज ये है कि हम को तो सारे संसार ने लूटा
उसकी हाँ और ना दोनों का मकसद लूटना ही था
कभी इनकार से लूटा कभी इकरार से लूटा
हमारा हक़ था फिर भी न ही सुनने को मिली अक्सर
कभी हाँ भी अगर की तो उसके इकरार ने लूटा
ये दुनिया है यहाँ पर लूटना फितरत है इन्सां की
अगर दुःख है तो बस इतना कि हमको यार ने लूटा
गिला गैरों से क्या कीजे लगे जब लूटने अपने
हर नातेदार ने लूटा हर रिश्तेदार ने लूटा
अगर पतझड़ में खुशियाँ लुट गयी होती तो क्या गम था
गिला किस से करे जिसको सदा बहार ने लूटा
खुदा का शुक्र ना कीजे तो फिर बतलाओ क्या कीजे
बनाया जिसने इस लायक हमें संसार ने लूटा
Thursday, August 19, 2010
किसको बेवफा कहें और कहे तो किस लिए
कहने की बात और अब करने की बात और है
किस को बेवफा कहे और कहें तो किस लिए
यहाँ वो ही वफ़ादार है जिसका न चलता जोर है
सारे रिश्ते इक कटी पतंग जैसे हो गये
कट गयी पतंग, बची हाथ में बस डोर है
जिस को देखो उसके माथे पर पसीना आ रहा
ऐसा लगता है सभी के दिल में कोई चोर है
इश्क देखो गिरते गिरते कौन हद तक आ गिरा
सुबह बाहों में और तो , शाम को कोई और है
यारों ये नया दौर है, यारों ये नया दौर है
Saturday, April 10, 2010
परवाना खुद शमा की लौ पे जल मरा कोई क्या करे
Thursday, April 8, 2010
ऐसे भी तड्पाता है कोई यार अपने यार को
Tuesday, April 6, 2010
यार जब दिल मे कोई बस जाये तो क्या कीजीये
Saturday, April 3, 2010
यार को हम बीच राह छोड दे मुमकिन नही
Saturday, March 6, 2010
इसके बाद शायद ना लिखु शायद ना लिख पाऊं
जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना
Friday, March 5, 2010
जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नहीं मै कह सकता
जो यार के काम ना आये कभी उसे यार नही मै कह सकता
जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नही मै कह सकता
सह सकता हूँ दुःख गम या तकलीफ चाहे जितनी भी हो
बस खुशी मुझे कोई दे जाए तो थोड़ी भी नही सह सकता
जुबां पे कुछ और दिल में कुछ ये रीत है दुनिया वालो की
लो तुम ही सम्भालो ये दुनिया मै तो इसमें नही रह सकता
या तो खुल के जी लेने दो या फिर महफ़िल से जाने दो
महफिल की रस्में निभाने को मैं तो जीना नहीं कह सकता
मुझको तो उड़ने के लिए आकाश भी छोटा पड़ता है
पिंजरे के पंछी की तरह मैं दायरों में नही रह सकता
प्यार वफा चाहत अपनापन जो चाहो नाम दो तुम इसको
बात सिर्फ इतनी है उस बिन दो पल भी नही रह सकता
है हिम्मत तो आ हाथ थाम नही हिम्मत तो फिर घर में बैठ
बुजदिल के हाथ में हाथ किसीका ज्यादा देर नही रह सकता
मैं ज़िंदा हूँ विपरीत दिशा बहने की ताकत रखता हूँ
मुर्दा मछली सा पानी के संग साथ साथ नहीं बह सकता
Thursday, March 4, 2010
कौन है वो मेरा क्या है तुम ही कुछ बतलाओ
मेरा होकर भी मेरा नहीं क्या लगता है समझाओ
दूर दूर रहते हैं लेकिन पास पास भी रहते हैं
दिल की सारी बाते अक्सर इक दूजे से कहते हैं
इक दूजे के काँधे पे सर रख कर हम रोये हैं
इक दूजे का हाथ पकड़ अक्सर गलियों में खोये हैं
दिल में समाये हैं हरदम बाहों में समाये कभी नहीं
एक ही थाली ,एक कटोरी इक चम्मच से खाते हैं
इक दूजे के पोंछे आंसू जब भी हम रोयें हैं
घर का मालिक मै हूँ तो वो भी नहीं उसकी चेरी
तुम ही कहो कि कौन है वो और क्या लगती है मेरी
Wednesday, March 3, 2010
जला है यूं घर का मेरे तिनका तिनका
उजालो में आने से डरते बहुत हैं
तेरे आने से घर हो सकता था रौशन
पर आँखे चोंधियाने से डरते बहुत हैं
जिसे भी दिखाए उसी ने कुरेदे
जख्मो की अपनी यही दास्ताँ है
बेवजह नही जो किसी मेहरबान को
जख्म अब दिखाने से डरते बहुत हैं
अभी तक भी सब की 'ना' ही सुनी थी
तेरी 'ना' भी कोई अजूबा नही है
सच तो है ये कि मेरी जानेमन
तेरी ' हाँ ' हो जाने से डरते बहुत हें
चाहा जिसे भी दिलोजान से चाहा
बस इतनी सी गल्ती रही है हमारी
है चाहत कि तुमको भी चाहे बहुत
पर गलती दोह्राने से से डरते बहुत हैं
राहों मे मिलते हो तब पूछते हो
कैसे हो क्या हाल है आपका
कभी घर में फुरसत से बैठो
सुनाने को गम के फसाने बहुत है
जब भी नशेमन बनाया है कोई
गिरी आसमान से कई बिजलियाँ
Tuesday, March 2, 2010
या तो अब तुझ संग जीना है या फिर तुझ संग ही है मरना
अपनी खुशी के लिए किसीका दामन गम से क्या भरना
हमको तो आदत है यूं भी प्यासा जीते रहने की
दो घूँट पानी के लिए किसी कूए को जूठा क्या करना
ये होठो तक की प्यास नहीं दिल भी प्यासा मन भी प्यासा
ये प्यास किसी से बुझनी नही फिर दोष पानी पे क्या धरना
जीने मरने में फर्क नहीं मतलब तो तेरे साथ से है
या तो अब तुझ संग जीना है या फिर तुझ संग अब है मरना
Monday, March 1, 2010
ख़्वाब टूट जाने का गम यारा बहुत बुरा होता है
पूरा कर सकते ही नहीं वो ख़्वाब किसीको मत दिखला
ख़्वाब टूट जाने का गम यारा बहुत बुरा होता है
Sunday, February 28, 2010
अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होल़ी
कभी खेला करते थे होली जिद्द कर के हम सबसे
पर जब से हुआ बदरंग ये जीवन छुए नही रंग तबसे
यूं तो होली खेलने अब भी साथी घर आते हैं
पर जीवन हो बदरंग तो फिर रंग कहाँ कोई भाते हैं
तुमने जानू कह कर मेरी जान ये क्या कर डाला
रंगहीन जीवन में मेरे फिर से रंग भर डाला
फिरसे जगा दी सोई उमंगे तुमने बन हमजोली
मन में हुड्द्म्ग मचा रही है इच्छाओं की टोली
तुमने हम पर रंग डाल कर तो दी है शुरुआत
देखना अब किन किन रंगो की होगी तुम पर बरसात
अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होली
अब ना बचेगी तेरी चुनरिया अब ना बचेगी होली
डरते डरते चुटकी भर रंग इक दूजे को लगाना
मैं ना मानु इसको होली मै ठहरा दीवाना
बस माथे गुलाल का टीका ये भी हुई कोई होली
ना रंगो से रंगी चुनरिया ना ही भीगी चोली
अरे होल़ी में भी सीमाओं का क्या रखना अहसास
भूखा ही मरना ही तो फिर तोड़ना क्यों उपवास
खेलनी ही तो जम कर खेलो मस्ती भरी ये होल़ी
मातम की तरह ना मनाओ होल़ी मेरे हमजोली
होल़ी को होल़ी सा खेलो या रहने दो हमजोली
जितनी भी होनी थी होल़ी तुम संग होल़ी होल़ी
Saturday, February 27, 2010
गंगा खुद नाले में गिर जाए तो नाला क्या करे
नाले का गंगा में मिलने का तो कोई हक़ नही
गंगा खुद नाले में मिल जाए तो नाला क्या करे
आग लगने से बचा रखा था सूखी घास को
चिंगारी कोई डाले तो घास ना जले तो क्या करे
साजे दिल के तार ढीले खुद ही तो उसने कसे
छूने से फिर सगीत बज उठा तो साज क्या करे
आग पे तो खुद कडाही अपने हाथों से चढा दी
अब कडाही ना तपे तो फिर कडाही क्या करे
अपने हाथों में उठाकर खुद शिखर तक ले गये
फिर छोड़ने से नीचे कोई ना गिरे तो क्या करे
किसी को आजमाने का ये तो तरीका ना हुआ
वो' हाँ 'करे तो भी मरे वो 'ना' करे तो भी मरे
Monday, February 22, 2010
तुम पहले दोस्त बनी होती तो बात ही कुछ और होती
तुम पहले दोस्त बनी होती तो बात ही कुछ और होती
कुछ पहले और मिली होती तो बात ही कुछ और होती
ये सूरज पहले निकल आता मेरे दिन कुछ और हुए होते
ये चांदनी पहले खिली होती तो रात ही कुछ और होती
ता उम्र अकेले तन्हा ही मै यहाँ वहां भटका ही किया
तेरा साथ मिला होता पहले तो बात ही कुछ और होती
जीवन के इस मरुथल में सूरज तो दहकते मिले बहुत
ये बदली पहले घिरी होती तो बरसात ही कुछ और होती
अब मुंह में दांत नही बाक़ी तो चनो का बोलो क्या कीजे
ये पोटली पहले मिली होती तो बात ही कुछ और होती
धरती तो क्या ये आसमान भी हम को छोटा पड़ जाता
कुछ पहले उड़ान भरी होती तो बात ही कुछ और होती
चंद खुशियाँ तेरी झोली में भर दूँ कोशिश है अब भी मेरी
कहीं पहले मिली होत्ती तो ये सौगात ही कुछ और होती
किस किस बात की बात करूं बस इतनी बात समझ लीजे
कुछ पहले बात हुई होती तो हर बात ही कुछ और होती
Sunday, February 21, 2010
अब तक तो दर्पण टूटा था कोई अक्स भी आज तो तोड़ गया
अब तक तो दर्पण टूटा था कोई अक्स भी आज तो तोड़ गया
पहले छूटे रिश्ते नाते लेकिन इक साया साथ में था
जाने कहाँ हम से चूक हुई साया भी साथ को छोड़ गया
पहले भी जख्म मिले हैं बहुत पर वक्त ने उनको भर डाला
नासूर से भी ज्यादा गहरा कोई जख्म वो दिल पे छोड़ गया
वो पल पल हमे आजमाता रहा हम प्यार समझते चले गये
आजमाईश ही अजमाइश में वो दिल का शीशा तोड़ गया
लगता था खुशियाँ ही खुशियाँ दामन में भर देगा
वो जान से प्यारा यार मेरा मेरी आँख में आंसू छोड़ गया
बेखबर से थामे हाथ उसका हम चलते गये चलते ही गये
अब जाऊं कहाँ कुछ सूझे ना ऐसे मोड़ पे वो हमे छोड़ गया
Saturday, February 20, 2010
वो मेरे करीब इतना आई मै समझा सब कुछ सुलझ गया
वो अपनी राह में चली गयी मै अपनी राह पे चता गया
Friday, February 19, 2010
मेरे यार सा सच्चा यार बड़ी किस्मत वालो को मिलता है
हर पल या तुम संग बीतता है या तेरी याद में कटता है
किस हद तक दिल में समाये हो इसका तुमको एहसास नही
दिल जितनी बार धडकता है तेरे नाम की माला जपता है
Sunday, February 14, 2010
ऐ मेरे खुदा इतना भी ना दे जितनी मेरी औकात नही
सब से सुन्दर फूल है जो इस दुनिया के गुलशन का
अर्थी पे वो आके चढ़े ये तो कोई अच्छी बात नही
वो कोहीनूर का हीरा है किसी ताज पे ही शोभा देगा
फकीर की झोली पड़ा रहे ये तो कोई अच्छी बात नही
रानी महारानी बनने का अधिकार जिसे कुदरत ने दिया
महलों की जगह खंडहर में रहे ये तो कोई अच्छी बात नही
वो परी है तो फिर अपने लिए क्यों नही फरिश्ता ढूँढती है
नाचीज से जोड़ रही रिश्ता ये तो कोई अच्छी बात नही
वो भोर की पहली किरण है तो मैं सांझ का हूँ ढलता सूरज
कुछ पल भी साथ नही मुमकिन ता उम्र दे सकता साथ नही
कोई मेरे यार को समझाओ मेरी वो समझता बात नही
जिस रात की सुबह होती है मै वो किस्मत की रात नही
ऐ मेरे खुदा इतना भी ना दे जितनी मेरी औकात नही
लंगूर के हाथ में हूर लगे ये तो कोई अच्छी बात नही
Friday, February 12, 2010
हुस्न की वो मल्लिका है और वो भी पूरे शवाव पे है
पर काम किसी के ना आये तो सब दौलत बेकार है
हुस्न की वो मल्लिका है और वो भी पूरे शबाब पे
हम है किस गिनती में उसके चाहने वाले हजार है
छूने से उसको डरते है मर ही ना हम जाए कहीं
कोई नजरो से घायल है तो कोई मर मिटा मुस्कान पे
सुना है कब्रिस्तान तक अब जनाजो की कतार है
बरसों नही तो गरजो ही सावन का कुछ अहसास हो
खाली बदली का छा जाना सावन में बेकार है
ज्येष्ठ और आषाढ़ के सूखे को वर्षों झेला है
क्या गलत है सावन जो तुझसे बारिश की दरकार है
तन से उसका मन है सुंदर मन से सुंदर उसका तन
कौन क्या उस लेता है उससे अपना अपना विचार है
वो चाँद से सुंदर है लेकिन उससे हासिल क्या हुआ
मेरे घर तो पहले सा अन्धेरा बरकरार है
किसी के अंगना चाँद उतरे मुझको इससे गिला नही
मेरे घर भी दिया जले बस इसका इन्तजार है
Wednesday, February 10, 2010
किसी ने हमसे प्यार किया हो ऐसा पहली बार हुआ है
तो फर्क बचा क्या गली के आशिक और तेरे दीवाने में
शायद कुछ भी हासिल ना हो तुझ को मेरे वीराने में
तेरा मिलना तय था बेशक जीवन के इस सफर में लेकिन
तेरा बिछुड़ना सोचा तक नही हमने जाने अनजाने में
कुछ भी मुमकिन नजर तुझे नही आता अपनी कहानी में
पर कुछ भी नामुमकिन सा नही ऐ दोस्त मेरे अफसाने में
रंग रूप धन दौलत यौवन फर्क ये सब मिट सकते हैं
पर फर्क उम्र का मिट नहीं पाना तेरे मेरे मिटाने से
फूल से ज्यादा हमको फूल की महक सुहानी लगती है
फूल कहाँ अच्छा लगता है खिलता हुआ वीराने में
मंजिल बदल नही सकते तो आ राहों को बदले हम
हमसफर रहो तुम राहो में तो मजा है चलते जाने में
मंजिल पे हो या राह में हो मतलब तो तेरे साथ से है
तुम साथ रहो तो फर्क नहीं मंजिल खोने या पाने में
बात वही होती है तो फिर फर्क क्यों इतना होता है
खुद वही बात समझने में और औरो को समझाने में
Tuesday, February 9, 2010
लगी हाथ अपने है प्यार की इक किताब अभी अभी
अब देखिये क्या रंग दिखाता है रेड रोज़
उन्हें आज हमने दिया है इक गुलाब अभी अभी
उस फूल में भी दिल मेरा आये उसे नजर
दिल के लहू से है रंगा गुलाब अभी अभी
ता उम्र बदली करवटे ना नींद थी ना ख़्वाब था
Monday, February 1, 2010
मंजिल कही होती है तो राहे ले जाती है कहीं
ख्वाहिशो के अंकुरित होने पे खुश क्या होईये
पौधा कभी बनती नही फल कभी लगते नही
वो आदतन ही मुस्कराता है तो क्या पता चले
कौन सी मुस्कान उसकी प्यार है कौन सी नहीं
अब ऐसे मेहरबां से फरमाइश करें तो क्या करें
जो जब भी कुछ मांगो तो कहता है नहीं अभी नही
उम्र सारी गुजार दी और कुछ ना हासिल कर सके
सोचते भर रह गए क्या गलत है और क्या सही
Saturday, January 30, 2010
नही आज तो कल दिल का शीशा टूट जाना है जरूर
वक्त ने खोला है फिरसे हम पे दरवाजा नया
दोस्त या दुश्मन कहूं इस वक्त को तू ही बता
यूँ तो मिलाता है मगर मिलते ही करता है जुदा
जगती है उम्मीद कुछ पाने कि जब भी जिन्दगी से
क्या मुकद्दर है मेरा और क्या मेरी तकदीर है
सामने थाली रही और अंदर निवाला ना गया
हर शख्स ही मुझ से बड़ा दिखने लगा है आजकल
वक्त ने कद मेरा किस हद तक बौना बना दिया
नहीं आज तो कल दिल का शीशा टूट जाना है जरूर
यही सोच कर तेरा अक्स हमने आत्मा में बसा लिया
तेरे लिए दीवानगी किस हद तक पहुंची है ये देख
दिल टूटा लेकिन अक्स तेरा हमने पूरा बचा लिया
Friday, January 29, 2010
मेरे क़त्ल की साजिश, वही, रचते रहे है रात भर
तुम रही खामोश या तेरी कही किसी बात पर
बन के बदली तुम बरस जाती तो करते शुक्रिया
वैसे गुजारिश के सिवा मेरा बस कहाँ किसी बात पर
ज़िन्दगी भर ही हसीनो ने हमें धोखा दिया
तुम्ही कहो कैसे भरोसा कर लूँ औरत जात पर
कोशिश भी की काबिल भी थे लेकिन ना हासिल कुछ हुआ
कामयाबी की लकीरे ही ना थी मेरे हाथ पर
इससे से ज्यादा क्या हमारी बेबसी होगी सनम
हमदर्द मिला है वो जो जख्म देता है बात बात पर
Thursday, January 28, 2010
इसे मान लेना तुम बेशक अंतिम इच्छा मेरी
मरू तो हाथो में रख देना तस्वीर कोई इक तेरी
इसके बाद इक रोज़ खुदा से अपनी मुलाक़ात होगी
शिकवे शिकायत होंगे आमने सामने हर बात होगी
आखिर में पूछे गा खुदा अब बता क्या मर्ज़ी है तेरी
कहूंगा मैं कि मेरे खुदा बस इतनी अर्ज़ है मेरी
अगले जन्म का सफर अकेले मुझ से तय ना होगा
तय होगा जब हसीं हमसफ़र साथ मेरे कोई होगा
फिर पूछेगा मुझसे खुदा हमसफर हो तेरी कैसी
Saturday, January 23, 2010
क्यों अपने रंग रूप का इतना तुझे गरूर है
है अब जवानी की दोपहरी तो सांझ कितनी दूर है
इक बार सांझ हो गयी तो रात भी घिर आयेगी
फिर लाख तूं करना यत्न वो बात न रह पायेगी
आँखों से कुछ दिखना नही तो नैन लड़ने किससे हैं
मुंह में दांत ही ना होंगे हंस के किस को दिखायेगी
बाल सब सफेद होगें और झड़ने भी लगेगे
फिर ये जाल जुल्फों का किस पे तूं फैलाएगी
Friday, January 22, 2010
हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम
इससे तो अच्छा था नश्तर ही चुभा जाता कोई
मरहम लगाये बिन अगर जाना था वापिस यार को
बीमार जानता है जब कि मर्ज़ लाइलाज है
बेकार है झूठी तसल्ली देना फिर बीमार को
गर जीता जाए दिल किसीका हार कर अपना अहम
जीत से बेहतर समझ लो ऎसी हसीं हार को
माझी ही चाहता ना था कि पार पहुंचाए हमें
छोड़ गया था कीनारे पर ही वो पतवार को
हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम
बेवजह मुजरिम ना ठहरा माझी या मझधार को
जख्मो को सहलाता ना तो भी कोई ग़म ना था
और तो जख्मी ना करता जालिम मेरे प्यार को
साथ छोड़ने की बात करता था यार बार बार
हमने कहा आमीन और दिया छोड़ इस संसार को
Thursday, January 21, 2010
प्यार नही करना है तो फिर जताती क्यों हो
दूर दूर रहना है तो फिर पास में आती क्यों हो
दिल से दिल ही नही मिले तो जिस्म मिलेगे कैसे
नही मिलाना दिल से दिल तो हाथ मिलाती क्यों हो
प्यास बुझाने की तुझ में ना चाहत है ना हिम्मत
प्यास बुझा सकती ही नही तो प्यास जगाती क्यों हो
कोई आस नही होती पूरी तो बहुत निराशा होती
आस नही करनी पूरी तो आस बंधाती क्यों हो
दे सकती हो कोई दवा तो आकर पूछो हाल मेरा
दवा नही देनी तो दर्द भी याद दिलाती क्यों हो
तेरी ही जिद्द थी अपने सब जख्म दिखाऊँ तुझको
देख के अब जख्मों के मेरे नाहक घबराती क्यों हो
Tuesday, January 19, 2010
जी करता है कभी मै तेरे होंठ गुलाबी चूमू
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार
जी करता है कभी मैं तेरे होंठ गुलाबी चूमूं
कभी तुझे आगोश में लेकर बिना पीये ही झूमु
या होठों से कोई गजल लिखूं तेरे गालो पे
या कोई गीत बनाऊं तेरे मखमली से बालों पे
या गदराये जिस्म के तेरे अंग अंग पे लिखूं कविता
या फिर तेरी चाल सी कोई ढूँढ़ लाऊं नई सरिता
कभी तेरे गालों को चूमूं जुल्फों से तेरी खेलूं
और कभी मन करता कसके बाहों में तुझे लेलूं
तुम चाहो तो कह लो इसको दबी वासना मेरी
वैसे सीधे सच्चे शब्दों में प्रेम का है इजहार
और अगर चाहो तो मान लो मुझे है तुम से प्यार
पहरों बैठे रहें हम लेके इक दूजे का हाथ
इक दिल दूजे दिल से कर ले बिन बोले हर बात
शिकवा शिकायत और गिला बिना कहे मिट जा
ए तुम इक कदम बढाओ और दो कदम मेरे बढ़ जायें
कभी तेरे हाथो की लकीरें मिलें मेरे हाथों में
बिगड़ी किस्मत संवर जाए बातों ही बातों में
जी करता है जब भी तुम घर आओगी इस बार
जिद्द कर तेरा हाथ पकड़ लू और करूं इसरार
बहुत दिनों के बाद अब लगता आता है इतवार
तुम चाहो तो समझ लो ये की मुझे है तुम से प्यार
Monday, January 18, 2010
तुम चाहो तो कह सकती हो मुझे है तुम से प्यार
जो चाहो वो समझो लेकिन मै कुछ कह नहीं सकता
हाँ इतना कहूगा और नही अब कर सकता इन्तजार
तुम चाहो तो मान लो ये कि मुझे है तुम से प्यार
ना जीवन में रस है कोई ना ही कोई मज़ा है
ऐसे लगता है कि तुम बिन जीना एक सजा है
सच तो ये है घर तुझ बिन खाली खाली लगता है
जैसे कोई गुलशन उजड़ा पतझड़ में दिखता है
इक तेरे आने से ही आ जायेगी फिर से बहार
तुम चाहो तो मान लो बेशक मुझे है तुम से प्यार
रात कोई कटती है कैसे बदल बदल के करवट
खुद ही बयां करेगी तुमसे बिस्तर की हर सिलवट
याद तुम्हे करते करते कभी आँख अगर लग जाती
सपनों में तुम आ जाती हो रात थोड़ी कट जाती
इसीलिए बस रात का मुझ को रहता है इन्तजार
तुम चाहो तो कह सकती हो मुझे है तुम से प्यार
Sunday, January 17, 2010
आसमां छोटा पड़ेगा इक दिन उसकी परवाज को
हर एक बाजी जीतता है पहले बाजी हार के
ये नही शतरंज ये तो इश्क की बिसात है
जीती जाती है यहां हर एक बाजी हार के
जान खुद दे दूंगा हंस के कह दो मेरे यार से
बाहर निकलेगा परिंदा जो पिंजरे की दरो दीवार से
छाछ के भी हैं जले नहीं दूध के ही हम जले
हर शै को पीना पड़ता है अब फूंक मार मार के
Saturday, January 16, 2010
मन के दरवाजे पे दस्तक देना ही काफी नहीं
ना गरज दौलत से उसको ना मेरे घरबार से
ना उसे मौसम की परवाह ना उसे दुनिया का डर
वारी मै हिम्मत पे उसकी सदक़े उसके प्यार पे
मन के दरवाजे पे दस्तक देना ही काफी नहीं
घर के दरवाजे पे दस्तक शामिल है उसके प्यार में
Thursday, January 14, 2010
बेवजह तो दिल धडकता है कहां यूं जोर से
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे
ता उम्र तो अकेले ही तय किया सारा सफर
है खत्म होने को सफर तो हमसफर मिलने लगे
बेवजह तो दिल धडकता है कहां यूं जोर से
दिल की गली से लगता है वो होके गुजरने लगे
यकीनन ही दिन बहारों के कुछ दूर अब नही रहे
उनके घर आने से सारे मौसम बदलने लगे
बेशक कोई नायाब तोहफा खुदा ने अब बख्शा हमें
गैर गुमसुम हो गये जो अपने थे जलने लगे
इतना हसीन हमसफर मिला भी तो किस मोड पर
जब खत्म सफर हो चला दुनिया से हम चलने लगे
Wednesday, January 13, 2010
चन्द सिक्को की खातिर अपना यार बदल गया पाला
जपने लगा है अब तो वो किसी और के नाम के माला
माली और सैयाद मे जिस को फर्क नजर नही आता
दाना चुगते चुगते परिन्दा जाल में वो फस जाता
कान्टे के सग लगा केचुआ मछली गर खायेगी हो
कितनी होशियार वो मछली आखिर फस जायेगी
ये दुनिया है यहां शिकारी अक्सर रूप छुपाता
लक्ष्मण रेखा पार हुई तो सिया हरण हो जाता
अपने रिश्ते तय करने का सब को है अधिकार
Tuesday, January 12, 2010
इससे अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे
डर ये है कि फिर नया कोई जख्म ना मिले हमे
उम्मीद ये कि शायद किस्मत अबसे बदलने लगे
डर डर के राहे इश्क मे रखना था हर कदम मगर
इक बार देखा फिर तो कदम खुद ब खुद चलने लगे
ना कोई चाहत ना थी उम्मीद ही दिल मे कोई
वो पहलु मे बैठे तो अरमां फिर से मचलने लगे
अब ये भी घर मे यार का आने में आना है बता
आये सुबह दो बातें की हुई सांझ तो चलने लगे
इससे अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई
मरहम लगाये बिन क्यों यार वापिस घर चलने लगे