Wednesday, April 19, 2017

सच तो ये है मेरी जानेमन तेरी हाँ हो जाने से डरते बहुत हैं

अंधेरो में रहने की आदत है हमको
उजाले में आने से डरते बहुत हो
तेरे आने से घर हो सकता था रोशन
 पर आँखे चौंधियाने से डरते बहुत हैं

जिसे भी दिखाए  उसीने कुरेदे
 जख्मों की अपनी यही दास्तान है
बेवजह नहीं जो किसी मेहरबाँ  को
 जख्म अब दिखाने से डरते बहुत हैं

अभी तक भी सब की ना ही सुनी थी
तेरी ना भी कोई अजूबा नही है
सच तो ये है  मेरी जानेमन
 तेरी हाँ हो जाने से डरते बहुत हैं

चाहा जिसे भी दिलो जां  से चाहा
बस इतनी सी गलती रही है हमारी
है चाहत की तुम को भी चाहें बहुत
पर गलती दोहराने से डरते बहुत हैं

राहों में मिलते हो तब पूछते हो
कैसे हो क्या हाल है आपका
कभी घर में आओ फुरसत से बैठो
 सुनाने को गम के फ़साने बहुत है

जब भी नशेमन बनाया है कोई
गिरी आसमां  से कई बिजलियाँ
जा है यूँ घर का मेरे तिनका तिनका
नया घर बसाने से डरते बहुत हैं
 


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