Wednesday, April 19, 2017

शीशे के घरों में रहते हो और पत्थर फेंकते हो मुझ पर

जब दिल में प्यार बचा ही नही  इक बार में रिश्ता ख़त्म करो
बेजान हुए रिश्तो की लाश को मुझसे नही ढोया  जाता
जब मन में कोई खुशी ना मै  होंठो से नही हंस सकता
जब दिल में कोई दर्द ना हो आँखों से नही रोया जाता
तकलीफ  मुझे पल पल दे कर  तुमने चाहा कि  खुशी मिले
अजी आम अगर खाने हो तो बबूल नही बोया जाता
इक इक रिश्ते के मरने पर   इतना रोया  कि  मत पूछो
  अब किसी के  मर जाने   पर  क्यों मुझसे नही रोया  जाता
शीशे के घरों में रहते हो और पत्थर फेंकते हो मुझ पर
शुक्र करो की मुझसे अपना कंट्रोल नही खोया जाता
उतना ना सही कुछ काम ही सही है अब भी माल तेरे घर में
ऐसे में खुले दरवाजे रख बेफिक्र नही सोया जाता 

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