Saturday, April 22, 2017

तुम बार बार इस दिल को क्या पाप पुण्य समझाते हो

तेरे मेरे करने से जग में सोचो आखिर क्या होता है
जब्ज्बजो होना होता है तब तब वैसा ही होता  है

सोते सोते लूट गया सब कुछ आँख खुली तो पता चला
पता है जब लुट  सकताहै  तो तो आखिर कोई क्यों सोता है

अंकगणित या अर्थशास्त्र के माना माहिर आप हुए
जीवन इतना सरल नही है इतने भर से क्या होता है

अपनी तबाही का आलम क्यों सब को बताते फिरते हो
ऐसे में जो तबाह हुआ वो  और  bhii ज़्यादा तबाह होता है


मन में तेरे क्या हलचल है बेहतर है  कोई ना जाने
दुनिया को जब पता चले गुनाह तभी गुनाह होता है

मन में तेरे लाख हो उलझन जुल्फों को सुलझा के रख
मन की उलझन चेहरे तक लाना यहाँ गुनाह होता है

तुम बार बार इस दिल को क्या पाप पुण्य समझाते हो
स्वर्ग नर्क इस दिल के लिए शायद एक सा ही होता है

भला बुरा और सही गलत नही इसको समझ आने वाला
इस दिल की तराजू में शायद एक ही पलड़ा बना होता है 

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