बोझ किसी पे बन के रहना ये मेरी फितरत में नहीं
खुदको किसी पे थोपे रखना ये मेरी आदत ही नहीं
जब चाहे कोई हाथ छुड़ा क्र दूर कहीं जा सकता है
ता उम्र किसी को बांधे रखना ये अपनी चाहत ही नहीं
जब तक जिस को रास आये वो तब तक उतना संग चले
जन्म मरण तक संग रहने का वादा किसी से लिया नही
इक हद से ज्यादा मुस्का कर मेहमाँ का स्वागत क्या करना
मुंह बना के बाद जो देखना हे मेहमाँ क्यों अब तक गया नही
ताने दे उलहाने दे या किसी और तरह अपमान करे
इस हद तक मेहमाँ बन कर घर किसी के मै ठहरा ही नही
रिश्ता तब तक ही रिश्ता है जब तक गर्माहट बनी रहे
मरे हुए रिश्ते ढोने की मुझ में हिम्मत रही नही
खुदको किसी पे थोपे रखना ये मेरी आदत ही नहीं
जब चाहे कोई हाथ छुड़ा क्र दूर कहीं जा सकता है
ता उम्र किसी को बांधे रखना ये अपनी चाहत ही नहीं
जब तक जिस को रास आये वो तब तक उतना संग चले
जन्म मरण तक संग रहने का वादा किसी से लिया नही
इक हद से ज्यादा मुस्का कर मेहमाँ का स्वागत क्या करना
मुंह बना के बाद जो देखना हे मेहमाँ क्यों अब तक गया नही
ताने दे उलहाने दे या किसी और तरह अपमान करे
इस हद तक मेहमाँ बन कर घर किसी के मै ठहरा ही नही
रिश्ता तब तक ही रिश्ता है जब तक गर्माहट बनी रहे
मरे हुए रिश्ते ढोने की मुझ में हिम्मत रही नही
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