Saturday, April 22, 2017

जब चाहे कोई हाथ छुड़ा क्र दूर कहीं जा सकता है

बोझ किसी पे बन के रहना ये मेरी फितरत में नहीं
 खुदको किसी पे थोपे रखना ये मेरी आदत ही नहीं

जब चाहे कोई हाथ छुड़ा क्र दूर कहीं जा सकता है
ता उम्र किसी को बांधे रखना ये अपनी चाहत ही नहीं

जब तक जिस को रास  आये वो तब तक उतना संग चले
जन्म मरण तक संग रहने का वादा  किसी से लिया नही

इक हद से ज्यादा मुस्का कर मेहमाँ  का स्वागत क्या करना
मुंह बना के बाद जो देखना हे मेहमाँ  क्यों अब तक गया नही

ताने दे उलहाने दे या किसी और तरह अपमान करे
इस हद तक मेहमाँ बन कर घर किसी के मै  ठहरा ही नही

रिश्ता तब तक ही रिश्ता है जब तक गर्माहट बनी रहे
मरे हुए रिश्ते ढोने  की मुझ में हिम्मत  रही नही   

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