Wednesday, April 19, 2017

दो चार बूँद ही सही जो दे सके वो दे

 दो चार कदम ही सही कुछ दूर संग तो चल
ता उम्र यूँ भी किस ने दिया है किसी का साथ
 उंगली ही पकड़ इतना भी सहारा है बहुत
कम्बख्त कौन कहता है कि  थाम मेरा हाथ
इस कदर इक उम्र से प्यासे रहे है हम
कुँए को पास पा  के भी जगती नही है प्यास
दो चार बूँद ही सही  जो दे सके वो दे
मै  कहाँ कहता हूँ दे भर भर मुझे ग्लास
प्यासे की प्यास कम  रही या थी बहुत अधिक
उस प्यास का कैसे कोई कर पायेगा अहसास
 ओस की दो चार  बूंदे जीभ पर रख कर
प्यासे ना जब बुझाली अपनी उम्र भर की प्यास
हर एक को  देख कर भी नही देखता कम्बख्त
ना जाने कौन शख्स  की करता है दिल तलाश
सारे वफादारों से तो मिलवा चुका हूँ मै
लगता है किसी बेवफा की है इसे तलाश

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