Wednesday, April 19, 2017

जो डरते हो कि कालिख ना लग जाये जरा भी

कत्ल करने का इरादा ही नहीं होता अगर
तो  आस्तीनों में खंजर छुपाया नही  करते

दर्द दिल जिन को छुपाना होता है तो वो
 आंसू के कतरे   आँख में लाया नही करते

 ज़िंदा हो तो ज़िंदा के जैसा जीना भी सीखो
मुर्दा मछली सा पानी के संग बह जाया नही करते

यहां   दर्द  किसी का  कोई भी बांटता  नही
 किस्से की तरह हाल-ए -दिल सुनाया नही करते

जो  डरते हो कि  कालिख ना लग जाये जरा भी
वो  काजर की कोठरी में फिर जाया नही करते









No comments: